Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ८८

११. ।दूसरे दिन दा जंग॥
१०ॴॴपिछला अंसू ततकरारुति ६ अगला अंसू>>१२
दोहरा: सुनि सूबे दोअू हटे, लशकर की सुधि लीनि।
भए सुमार शुमार बिन, नौ सै प्रान बिहीन१ ॥१॥
भुयंग प्रयात छंद: पुन खान पान कियो जाइ डेरे।
टिके बीर धीरं लरे जो घनेरे।
थिरे सिंघ गाढे लरैण मोरचा मैण।
गुरू तीर केते नमो कै पगा मैण२ ॥२॥
बडी मार होई महाराज जानो।
तुफंगैण हती देखि शज़त्र मदानो।
दड़ादाड़ गेरे फल पज़क जैसे३।
महां बुज़धि अंधे हते शीघ्र तैसे ॥३॥
अुदे सिंघ संगी दइआ सिंघ दोअू।
पहूचे जबै हेल को ओज जोअू।
गिरे ब्रिंद घोरा मरे बीर मानी।
मरे पुंज कैसे, नहीण जाइ जानी ॥४॥
प्रभू फेर बोले लरो राखि दाअू।
थिरो मोरचा मै न हूजो अगाअू।
करै नेर शज़त्र तबै ताक मारहु।
सवाधान बैठहु नहीण एव हारहु४ ॥५॥
दियो साल पज़त्रं लगे घाव जाणही।
घसावैण लगावैण बचावैण सु तांही।
कुअू चार जामं, कुअू आठ जामं।
मिलै घाव देहं सु पावैण अरामं ॥६॥
मरे सिंघ केते गए देव लोकं।सुखं पाइ सारे मिटी सरब शोकं।
कियो खान पान भए सावधान।
थिरे मोरचा मैण महां ओजवान ॥७॥
रहे जाग आधे परे आध सोए।

१बेशुमार ग़खमी होए ते नौण सै मरे।
२चरनां विच नमो करके।
३पज़के फलां वाणग।
४एस तर्हां हारोगे नहीण।

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