Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) ९२

१२. ।राजे दा वग़ीर राह लैंआइआ॥
११ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>१३
दोहरा: न्रिभै होइ हित साम के, गुर ढिग चढो वग़ीर।
भीमचंद चित चटपटी१, बडी चिंत नहि धीर ॥१॥
चौपई: -कलीधर बड तेज प्रतापी।
नहीण नूनता२ सहहि कदापी।
किम है है३, किम अुलघहि आगे?
महां बिघन हुइ जे रण जागे ॥२॥
गिरपति मेल बिखै गन आए।
हटहि कुशल सोण नर समुदाए।
गावहि गीत अुछाहि बिसाला।
करिबो जंग शोक की साला४ ॥३॥
निज निज डेरे टिकैण पहारी।
आइ वग़ीर ते ठानहि तारी-।
इम प्रतीखना धरि टिक रहे।
गुर कबि मिलहि५ परसपर रहेण ॥४॥
अुत कलीधर लगे दिवान।
बैठे शोभति इंद्र समान।
सुधि पहुची गिरराजनि केरी।
बाह बराति बटोरि बडेरी ॥५॥
परो समीप आनि करि डेरा।
गज बाजी गन सुभटनि केरा।
इस ही पंथ अुलघो चहैण।
दल बहु संग न्रिभै अुर अहैण ॥६॥
सुनि बोले प्रभु बहु बल भरि कै।
किह दुइ सीस अुलघहि अरि कै६।तजौण धनुख ते बान करारे।


१अुचिड़ चिज़ती।
२छुटिआई।
३किवेण होवेगी।
४शोक दा घर है।
५गुरू जी कदे मिलाप कर लैं तां (चंगी गल है)। (अ) गुरू जी ने कद मिलंा है?
६किस दे दो सिर हैन कि जंग करके लघेगा?

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