Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २४
चौथी तुक-नदन जग = जगत है पुज़त्र अुसदा। पर अभिनदन विच जो अहिलाद दा
भाव है, अुसदे कटाख अुते कवि जी नदन पद अहिलाद-दाती दे
भाव लई वरतदे जापदे हन।
सैया: तरनी बिघना सलिता पति की
पति की अति रज़खक श्री बरनी।बरनी सुखदा शरनागति की
गति की समता गज की करनी।
कर नीरज, ओट सुधारति की
रति की प्रभुता सगरी हरनी।
हरनी सम आणख सु श्री मति की
मति की करता, तनावै तरनी ॥७॥
तरनी = बेड़ी ।संस: तरणी॥ सलितापति = समुंदर ।सलिता = नदी। पति
= सुआमी॥। पति = अबरो, इशारा कवीआण दी इग़त वज़ल है, जो विघनां दे नाश
होण नाल बच रहिणदी है। स्री = सरसती। स्री लछमी दा नाम है, पर स्री सरसती
दा बी नाम है, एथे अरथ सरसती है।
बरनी = वरणन कीती गई है। (अ) प्रतिपालक।
।संस: वरण = चुंना, घेरना, पालंा॥
सुखदा = सुखदाती। शरनागति = शरणि आइआण दी।
गति = चाल। गज = हाथी ने। (हाथी दी चाल तोण मुराद गंभीरता दी है)।
की = कीह। नीरज = कवल।
ओट = आश्रा। अवधी। (अ) जिस दे आसरे अुडदी है, मुराद है हंस तोण
जिस पर सरसती चड़्हदी है। (ॲ) अज़ख दे छज़पर।
सुधारति = फबन, सुधारित+की = अुज़जलता दी, सुंदरता दी।
।संस: शुज़दिध तोण॥ रति दी प्रभुता हरी जाणी दज़सदी है कि इस तोण पहिलां
कोई गज़ल रती जैसी सुंदरी दी प्रभता दूर करन वाली है सो सुंदरता दीअवधी है।
ओट सुधारतिकी = सुंदरता दी अवधी। (अगले पंने ते होर अरथ पड़्हो।)
रति = कामदेव दी इसत्री। (रती दी प्रभुता हरन तोण मुराद-अति सुंदर-
होण दी है)।
हरनी-हरन वाली, खोह लैं वाली।
हरनी = हरण दी मादा, म्रिगी, हरणी।
श्री मति = शोभा संयुकत, मालदार, खुशहाल, सुहणा, प्रसिज़ध। स्री मान
इक वाक है जो सतिकार लई वडे पुरखां नाल लाईदा है, श्री मति अुसे तर्हां
इसत्रीआण लई वरतदे हन।
मति की करता-बुज़धी देण वाली।