Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २१
२. ।राम राइ दा मसंद मेल ठहिराअुण हित आइआ॥
१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>३
दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू,
राज समाज ब्रिधाइ।
करी सकेलनि बाहिनी,
त्रास न्रिपनि अुपजाइ ॥१॥
चौपई: सुनि श्री रामराइ बडिआई।
-दिन प्रति बधति जाति अधिकाई१-।
मिलिनि पिखिनि की प्रीति अुपावै।
-कहनि सुननि हुइ- मन महि आवै२ ॥२॥
केतिक दिन लौ रहो बिचारति।
कुछ जग दिशि ते शंका धारति।
-डेरे बिखे न बनि है जान३।
अलप लखहि मो कहु सभि थान ॥३॥
सो सभि बिधिते अहैण बिसाला।
अहौण भतीजा, रहौण निराला।
मुर पित ते गुरता लघु भाई४।
तिन ते पुन इन के घर आई ॥४॥
अहै जथारथ इह सभि बाती।
तअू अधिक मैण जग बज़खाती५।
ब्रिंद संगतां जो मुहि मानहि।
सभि ते अधिक रिदे पहिचानहि ॥५॥
जे पहुचौण मैण चलि तिस थान।
तिस ते अलप मोहि लेण जानि।
सिज़ख मसंद संगतां जेई।
मिलि मिलि करहि बिचारन तेई ॥६॥
मग महि मेल कितहु जे होइ।
निज निज थल ते चलि दिशि दोइ।
१बहुत वधदी जाणदी है (वडिआई)।
२मन विच आअुणदी है (राम राइ दे)।
३गुरू जी दे डेरे विच तां जाणा नहीण बणदा।
४भाव श्री हरिराइ जी तोण गुरता श्री क्रिशन जी ळ होई।
५तां बी मैण जगत विच वज़डा प्रगट हां।