Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ११०

८. ।गुर परनाली॥
७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>९
चौपई: पुन श्री हरि गोबिंद गुरु होए।
प्रभु१ पीरी अरु मीरी दोए।
जनम लीन जहिण ग्राम वडाली।
बली महिद२ तन डील३ बिसाली ॥१॥
दारा तीन* सुशीला४ बाही।
इक दमोदरी, दुति मरवाही।
नाम नानकी त्रितिा केरा।
मन सिमरति जिन अनणद घनेरा ॥२॥
पंच पुज़त्र इन ते अुतपज़ता।
जेठो श्री बाबा गुरदिज़ता।
सूरज मल अरु अनी राइ भनि।
अटल राइ ब्रहगान सभिनि मन ॥३॥
पंचम भे श्री तेग बहादर+।
निकट बिठावहिण जिन पित सादर५।
स्री गुर हरिगोबिंद सम शेर६।
हते तुरक गन गहि शमशेर ॥४॥
गन दासन के कार सुधारे।
जग महिण कीरति बहु बिसतारे।
इक त्रिंसत संमत७ दस मास।
खट दिन गुरता थिति सुखरास ॥५॥
सोलहि सत पचानवे८ साल।१मालक।
२महांबली।
३कज़द।
*देखो रास ४ अंसू २७ अंक ४६ दी हेठली
श्री गुरू हरि गोबिंद जी दे विआहां पर टूक।
४सुशील सुभाव वालीआण।
+छेवेण गुराण दी इक सपुज़त्री बीबी वीरो जी बी सी।
५सहित आदर।
६शेर वाणग।
७इकज़ती साल।
८-१६९५।

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