Faridkot Wala Teeka
पंना १
सति नामु करता पुरखु निरभअु निरवैरु अकाल मूरति
अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥
॥ जपु ॥
बेद सूपु अुपदेस मै ओण के आदि मै एक अंगु नहीण कहा ईहां कहा है तिस का
एहि तातपरयु है सो सभ को प्रतीत हो जावे जो सिधांत वसतू अदैत है चदैत नहीण यां ते
जीव ईस एक रूपु हैण भेद वादीयोण के मत वत दो नहीण केई कि एक अंगु आदि मै कहिने
का एहि हेतू कहते हैण जो एहि अुपदेसु पुरख इसत्री मात्र को सांझा है अरु वेद मै तीन
वरणोण के पुरखोण बिनां निखल वरणोण की इसत्रीआण अर पुरखोण को ओण के मुख सेण अुचारन
करन की आगा नहीण यां ते सांझा अुपदेसु भी करना और पूरब वेद मै कही हूई अपनी
आगा भी सही रखनी एह विचार के प्रमेसर ने ओण के आदि मै पड़दा रख दीआ है जो
पड़दे सेण सभी बोलेण पड़दे सेण बोलंे मै दोशु नहीण एही बात समझ के बालमीक को रिखीयोण
ने राम मंत्र का अुलटा मरा अुपदेसु कीआ था पड़दे का अरथु एहि है जो पहिले पाठ से
और रीति का पाठु कर देंा अरथु इस पज़ख मै भी एक का वही है जो पीछे कहा है। ओण
का अरथु वाकरण वाले नामु लेने मात्र सेण रज़खा करने वाला परमेसरु कहते हैणअव
धातु से बनावते तैण अव का अरथु रखया हो यां ते रखया करने वाले का नाम ओण कहे हैण
और ग्रंथोण वाले (अ) (अु) (म) इन तीन मात्रा को मेल के इस को बनावेण हैण (अ) (अु)
का ओ मंमे की बिंदी हो कर ओण बने है अकार अुकार मकार इन तीनो का नामु मात्रा है
मात्रा नामु (अवैव) अंग का है यां ते ओण समुदाइ के एह तीन अवैव हैण अकार मात्रा का
अरथु विराटु ईसर और विस जीव है सथूल सरीर के और जाग्रत अवसथा के सामी जीव
का नामु विस है और पंज सथूल भूतोण के अंस मिला कर बने चार खाणी के सरीर सथूल
सरीर कहीए हैण जिस काल मै दस इंद्रे तथा चार अंतहकरण और चौदां इन के विख
और चौदां इंद्रीयोण के सहाई देवता विज़दमान होवेण तिस काल का नामु जाग्रत अवसथा है
जो प्रसिज़ध जागं समा है इस जाग्रत अवसथा औरसथूल सरीरके अभिमानी का नामु विस
जीव है सो विस जीव बिराट सरूपु है काहेते जीवोण के सरीरोण का नामु पिंडु है और सभ
पिंडोण के समुदाइ का नामु ब्रहमाणडु है जैसे भिंन भिंन जाति वाले अनेक बिरछोण के
समुदाइ का नामु बनु होवे है तैसे चार खाणी के पिंड और चौदां भवनोण का नामु ब्रहमाणड है
और ब्रहमाणड के सामी ईसर का नामु विराट है पिंड के सामी जीव का नामु विसहै और
पिंड ब्रहमाणड से जुदा नहीण यां ते पिंड का सामी विस ब्रहमाणड के सामी विराट से जुदा
नहीण दोनोण एक रूपु हैण इन के एक रूपु होने मै बीजु एह है जो पीछे एक अंक का अरथु
एक परमातमा कहा है वही अपनी माया साथ मिल कर जीव ईस दो रूप धार लेता है
जैसे एक ही अकासु घट मठ मै मिल के दो रूप हो जाता है सो दो रूप भी तब प्रयंत रहिते
हैण जब प्रयंत दो रूप करने वालीआण वसतू भिंन भिंन देसोण मेण रहिती हैण और जब एक देस
मै होवेण तब वहु एक रूपु हो जाता है जैसे जब घट को मठ मै रज़ख देवेण तब दो रूप करने
वाले घट मठ को एक असथान मै होने से अकासु एक रूपु हो जाता है तैसे पिंड ब्रहमाणड
को एक रूपु हो कर एक देस मै होने सेण तिन के सामी विस और विराट भी एक रूपु हो
जाते हैण इस रीति से असथूल सरीर और जाग्रत अवसथा का सामी विस जीवन विराट
सरूपु है ऐसे ओण की पहिली मात्रा का अरथु गान की इज़छा वाला पुरखु चितवे अकार से