Faridkot Wala Teeka

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जिसने औगुनोण को काट करके गुनी अकाल को समझाया है तिस सतगुर को बड़ा
पुंन प्रापत है। जिनके मसतक मेण मुख भाव करता पुरख ने लिख पाइआ है सो सतगुरू
तिन को मिला है॥७॥
सलोकु म ३ ॥
भगति करहि मरजीवड़े गुरमुखि भगति सदा होइ ॥
ओना कअु धुरि भगति खजाना बखसिआ मेटि न सकै कोइ ॥
जो पुरश (मरिजीवड़े) अरथात अती ततिछू हैण सो भगती करते हैण और तिन
गुरमुखोण से नित भगती ही होती है। अर अुन गुरमुखोण को जो धुरसे अकाल पुरख ने
भगती का खजाना बखशिश कीआ है तिस को मिटाइ कोई नहीण सकता है॥
गुण निधानु मनि पाइआ एको सचा सोइ ॥
नानक गुरमुखि मिलि रहे फिरि विछोड़ा कदे न होइ ॥१॥
तिनोण ने एक सचा सोई गुणों का खजाना मन मैण पाइआ है। स्री गुरू जी कहते हैण
गुरमुख ऐसे मिल रहे हैण जो तिन को फिर कबी विछोड़ा नहीण होता है॥१॥
म ३ ॥
सतिगुर की सेव न कीनीआ किआ ओहु करे वीचारु ॥
सबदै सार न जाणई बिखु भूला गावारु ॥
जिसने सतगुरू की सेवा नहीण करी है वहु किआ बिचार करैगा। सबद की सार ही
नहीण जानता है ऐसा मूरख बिखिओण मेण भूला हूआ है॥
अगिआनी अंधु बहु करम कमावै दूजै भाइ पिआरु ॥
अंहोदा आपु गंाइदे जमु मारि करे तिन खुआरु ॥
नानक किस नो आखीऐ जा आपे बखसंहारु ॥२॥
अगिआनी हो कर के बहुत अंधे करमोण को कमाअुते हैण औ तिनका दैत भाअु मेण
प्रेम लग रहा है बिनां हूआ ही अपने को बडा गिनता है तिस हंकार करके जम तिस को
मार करके खुआर करता है। स्री गुरू जी कहते हैणजब वहु आप ही बखशिंद है तब और
किसके आगे प्रारथना करीए॥२॥
पअुड़ी ॥
तू करता सभु किछु जाणदा सभि जीअ तुमारे ॥
जिसु तू भावै तिसु तू मेलि लैहि किआ जंत विचारे ॥
हे करता पुरख तूं सभ किछ जानता हैण सभ जीव तेरे ही हैण। इन जंतोण के किआ
बस है जिसको तूं चाहता हैण तिस को तूं मिलाइ लेता हैण॥
तू करण कारण समरथु है सचु सिरजंहारे ॥
जिसु तू मेलहि पिआरिआ सो तुधु मिलै गुरमुखि वीचारे ॥
हअु बलिहारी सतिगुर आपणे जिनि मेरा हरि अलखु लखारे ॥८॥
हे सचे सिरजंहारे तुहीण करण कारण समरथ हैण। जिसको तूं मेलता हैण हे
पिआरिआ सोई तैळ मिलता है ऐसे गुरमुख बीचारते हैण मैण अपने गुरोण पर से बलिहार
जाता हूं। जिनोण ने तूं मेरा अलख प्रभू हरी लखाइआ है॥८॥
सलोक म ३ ॥

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