Faridkot Wala Teeka
जो मन सेकठोर हैण और कासी जी मैण सरीर का ताग करेण तिससे नरक से नहीण
बचिआ जाता वा तिस को जो दुख होगा सो कहा नहीण जाता॥ भैरोण जी की लठ अुस के कान
मेण अवस फिरती है वा (नरकुन) तिस को नरकु प्रापत नहीण होता (बांचिआ) बचिआ
जाता है प्रंतू एक आप ही बचता है और जो हरी का संतु (हाड़ंबै) मगहर भी मर जावै तो
नामके प्रताप करके आप तो मुकत सरूप ही है और भी साथ ही सगली संगति तिसनै
तराई है वा तरावता है॥
दिनसु न रैनि बेदु नही सासत्र तहा बसै निरंकारा ॥
दिन औ रात्री बंद अरु सासत्र इह जिस पद विखै कलपणा नहीण है तिस पद मैण
निरंकार इसथित है भाव वहु सरब कलपना सून है दूसरा भाव इहु है के कोई देसु
ऐसा है जहां दिन रात्रि बेद सासत्र का बिओहारु नहीण है निरंकारु तहां बी बसता है भाव
स्रबत्र पूरनु है॥
कहि कबीर नर तिसहि धिआवहु बावरिआ संसारा ॥४॥४॥३७॥
स्री कबीर जी कहते हैण हे बावरिआ संसारा तिस नर रूप परमातमा का धाअुना
करो॥४॥४॥३७॥
पंना ४८५
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
आसा बांणी स्री नामदेअु जी की
नाम देअु जी वेदांतअुपदेश कहते हैण॥
एक अनेक बिआपक पूरक जत देखअु तत सोई ॥
एक ही अनेक रूप हो कर बिआपक हो रहा है (पूरक) वही पालना कर रहा है
जहां देखीए तहां सोई दिखाई पड़ता है॥
माइआ चित्र बचित्र बिमोहित बिरला बूझै कोई ॥१॥
माइआ जो (चित्र) सुंदर है (बचित्र) अनेक तरह की है तिस कर अती मोहित
हूआ हूआ वा मोह ते बिनां हो कर कोई बिरला जीव ब्रहम को बूझता है॥१॥
सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंद बिनु नही कोई ॥
सूतु एकु मणि सत सहंस जैसे ओति पोति प्रभु सोई ॥१॥ रहाअु ॥
सभ सथान मेण गोबिंद बिराजमान है तीन बार कहने का भाव इह है तीनो काल
तीनो लोक तीनो अवसथा इतिआदि जान लेना गोबिंद से बिनां और कोई नहीण है सूत तो
एक होता है मणीआण मणके (सत) सैणकड़े होण वा (सहंस) हजारां सूत की हो सो अुसी से
परोई जाती है इसी प्रकार ओत पोत तांे पेटे अंतर बाहर सरब रूप सो प्रभू आप ही
है॥
जल तरंग अरु फेन बुदबुदा जल ते भिंन न होई ॥
जैसे जल मेण तरंग अुठता है और (फेन) झग आअुती है और बुदबुदा होता है सो
इह विचार करने से जल से भिंन नहीण होते हैण अरथातजल रूप ही है॥
इहु परपंचु पारब्रहम की लीला बिचरत आन न होई ॥२॥