Faridkot Wala Teeka
दसगीरी देहि दिलावर तूही तूही एक ॥
(दस) हाथ मेरे का (गीरी) पकड़ना कर एही दान मैळ देह हे परम (दिलावर)
बहादर एक तू ही लोक औ तू ही प्रलोक मैण मेरा वाली हैण॥
करतार कुदरति करण खालक नानक तेरी टेक ॥२॥५॥
हे करतार तूं अपनी (कुदरति) सकती करके सरब को रचनहार हैण (खालक) सरब
स्रिसटि का मालक हैण तां ते स्री गुरू जी कहते हैण मैने सदा तेरी (टेक) सरन पकड़ी
है॥२॥५॥
तिलग महला १ घरु २
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
जगासी औ ततवेता रूप अुतम मधम सखीओण के संबाद के रूपक से स्री गुरू जी
अुपदेश करते हैण॥
जिनि कीआ तिनि देखिआ किआ कहीऐ रे भाई ॥
जिन जगत को पैदा कीआ है तिसी ने देखिआ भाव पालना करी है किआ तिस को
कहीए सुतंत्र है कोई तिस पर हुकम नहीण कर सकता॥
पंना ७२५
आपे जाणै करे आपि जिनि वाड़ी है लाई ॥१॥
आप ही जानता है करमाण को और फल भी आप ही प्रापति करता है जिस जगत
रूपी बगीची लाई है॥१॥राइसा पिआरे का राइसा जितु सदा सुखु होई ॥ रहाअु ॥
तिस पिआरे को मन बांणी से जब मैण (राइसा) रावणा अराधना करूंगा तब तिसते
सदा सुख होवेगा॥
जिनि रंगि कंतु न राविआ सा पछो रे तांी ॥
हे भाई जिसने प्रेम कर ऐसे सुआमी को नहीण (राविआ) अराधिआ(सा) सोई
अगानी छुटड़ पसचाताप करती है॥
हाथ पछोड़ै सिरु धुंै जब रैंि विहांी ॥२॥
जब इह आयू रूपी रात्री बितीत होई तब हथां को (पछोड़ै) पछाड़ कर सिर
फेरेगी॥२॥
पछोतावा ना मिलै जब चूकैगी सारी ॥
जब जीव रूपी (सारी) नरद अपने अपने घर ते भूल जावेगी वा अुठ जावेगी भाव
जीव म्रितू कर ग्रसा जावेगा फेर पती को ना मिलने का पसचाताप ही रहि जाएगा॥
ता फिरि पिआरा रावीऐ जब आवैगी वारी ॥३॥
जब फेर किसी करम दारा मनुख देह के मिलने की वारी आवेगी तब फेर प्रेम से
तिस पिआरे पती को रावना करेगी भाव से इस समेण जनम विअरथ गया फेर एह जनम
मिलेगा तब साधन सपंन होने कर तिस वाहिगुरू की प्रापती होवेगी भाव एह है इसी
जनम मैण परमेसर दा भजन करना चाहीए॥३॥कंतु लीआ सोहागंी मै ते वधवी एह ॥