Faridkot Wala Teeka
और वहु आसा से निरास हो कर संसार से (बैरागी) बिरकत भए हैण और सै
सरूप मै तिनोण ने समाधी लगाई है॥
भिखिआ नामि रजे संतोखी अंम्रितु सहजि पीआई ॥३॥
नामी के नाम की भिखा को पाइ कर वहु संतोखी हैण और तिनोण ने सहजे ही
अंम्रित रूप सिखा जगासूओण को पिलाई है॥३॥
दुबिधा विचि बैरागु न होवी जब लगु दूजी राई ॥
दुबिधा विखे बैराग कबी नहीण होता सो (दूजी) दैत भावना जब तक राई मात्र भी
है जब तक जीव को सुख नहीण होता॥ पुन: ऐसे बेनती करते हैण॥
सभु जगु तेरा तू एको दाता अवरु न दूजा भाई ॥
सभ संसार तेरा है अर (तूं) एक ही सभका दाता हैण हे भाई तिसते बिनां और
दूसरा कोई दाता नहीण है वा दूजा होर कोई साळ भावने वाला नहीण है।
मनमुखि जंत दुखि सदा निवासी गुरमुखि दे वडिआई ॥
मनमुख जीव सदीव दुख मैण निवास करते हैण और सो वाहिगुरू गुरमुखोण को बडाई
देता है॥
अपर अपार अगंम अगोचर कहणै कीम न पाई ॥४॥
वाहगुरू अपर अपारबिअंत है (अगम) जिसमै मनकी प्रापती नहीण है पुन:
(अगोचर) इंद्रयोण का अविसय है और धारना से बिना कहणे करके तिस की कीमति नहीण
पाई भाव से यथारथ बोध नहीण होता॥४॥
सुंन समाधि महा परमारथु तीनि भवण पति नामं ॥
(सुंन) अफर महा प्रमारथु रूप है पुन: त्रिलोकी का पती जिसका नाम है तिस मै
हमने समाधि करी है॥
मसतकि लेखु जीआ जगि जोनी सिरि सिरि लेखु सहामं ॥
(जगि जोनी) जगत का कारण रूप ब्रहम जीवोण के मसतक पर लेख लिखता है और
जीवा लिखे अनसार (सिरि सिरि) भिंन-भिंन दुख सुख के (सहामं) सहारते हैण॥
करम सुकरम कराए आपे आपे भगति द्रिड़ामं ॥
सुभ औ असुभ करम जीवोण से आप ही करावता है और आप ही अपणी भगती
द्रिड़ करावता है॥
मनि मुखि जूठि लहै भै मान आपे गिआनु अगामं ॥५॥
मनमुख जीवोण की जूठ वा मन अर मुख की जूठ भै के मानणे कर अुतर जाती है
और आपे ही (अगामं) वाहिगुरू तिन को आपणा गान देता है॥५॥ जे कहे तिस का
अनंद कैसा है? सो कहिते हैण॥
पंना ६३५
जिन चाखिआ सेई सादु जाणनि जिअु गुंगे मिठिआई ॥जिन पुरसोण ने तिस के नाम रस को चाखा है वही तिस के साद को जानते हैण जिस
तरां गुंगे पुरस की जिहवा मठिआई आदि के साद को कहि नहीण सकती॥
अकथै का किआ कथीऐ भाई चालअु सदा रजाई ॥
तांते हे भाई तिस अकथ का कया कथन करीए भाव बंत ही कहीए सदीव तिस
की आगा मैण चलंा करीए॥