Faridkot Wala Teeka
संत जनोण को सरब (जाई) असथानोण मैण अनंद है (ग्रिह) घर मैण और बाहर भगत
जनोण का ठाकुर रखकु हैकिअुणकि वहु सरब असथानोण मैण पूरन होइ रहिआ है भाव तिस
के मिलाप कर वहु सदा अनंद रहिते हैण॥२॥
ता कअु कोइ न पहुचनहारा जा कै अंगि गुसाई ॥
तिस को कोई पहुंचने वाला भाव से भै देने वाला नहीण है जिसके (अंगि) पख मैण
(गुसाईण) वाहिगुरू है॥
जम की त्रास मिटै जिसु सिमरत नानक नामु धिआई ॥२॥२॥३३॥
जिसके सिमरन ते जमकी सासना का भै मिट जाता है स्री गुरू जी कहते हैण मैण तिस
हरिनाम को धिआवना करता हूं॥२॥२॥३३॥
धनासरी महला ५ ॥
दरबवंतु दरबु देखि गरबै भूमवंतु अभिमानी ॥
जैसे धनवंत धन को देख कर (गरबै) हंकार करता है और जैसे प्रिथवी का मालकु
भाव जिमीणदार जमीन करके अभिमानी होता है॥
राजा जानै सगल राजु हमरा तिअु हरि जन टेक सुआमी ॥१॥
जैसे राजा जानता है कि सरब राज हमारा है तिसी प्रकार हरि जनोण को तिस सामी
की टेक है अरथात आसरा है॥
जे कोअू अपुनी ओट समारै ॥
जैसा बितु तैसा होइ वरतै अपुना बलु नही हारै ॥१॥ रहाअु ॥
जे कोई अपने आसरे आए को संमालता है कि एहपुरस मेरी सरन आइआ है
जैसा अुन का (बितु) बल होता है तिसी प्रकार हो कर अुस की रखा मैण (वरतै) प्रविरत
होता है तिस की रखा मै वहु मानुख अपना बल हारता नहीण है तां ते प्रमेसर सरण आए
की रखा किअुण नहीण करेगा भाव से करेगा॥
आन तिआगि भए इक आसर सरणि सरणि करि आए ॥
तैसे संत जन और सभ को तिआग के वाहिगुरू के आसरे भए हैण मन बांणी करके
सरन आए हैण॥
संत अनुग्रह भए मन निरमल नानक हरि गुन गाए ॥२॥३॥३४॥
स्री गुरू जी कहिते हैण संतोण की क्रिपा ते हरि गुण गाए ते तिन के मन आदी
अंतसकरन निरमल भए हैण॥२॥३॥३४॥
धनासरी महला ५ ॥
संतोण की चरन धूड़ी माणगते हूए बेनती करते हैण॥
जा कअु हरि रंगु लागो इसु जुग महि सो कहीअत है सूरा ॥
हे हरी जिसको आपका प्रेम लागिआ है सोई इस युग के बीच सूरमा कहीता है॥
आतम जिंै सगल वसि ता कै जा का सतिगुरु पूरा ॥१॥
जिसने (आतम) मन को जीता है संपूरन लोक वा इंद्रे तिस के वस हो जाते हैण
परंतू जिसका सतिगुर (पूरा) ब्रहम स्रोती ब्रहम नेसटी होता है सो मन को जीतता है॥१॥
पंना ६८०ठाकुरु गाईऐ आतम रंगि ॥