Faridkot Wala Teeka

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जैतसरी महला ४ ॥
हीरा लालु अमोलकु है भारी बिनु गाहक मीका काखा ॥
गिआन रूपी हीरा और नाम वा प्रेम रूपी लाल जो भारी अमोलक है सो अधिकारी
रूपी गाहकसे बिनां (काखा) कज़खोण मैण अरथात विसे रूपी घास मैण (मीका) मिल रहा है वा
(मीका काखा) इक कख का होइ रहा है॥
रतन गाहकु गुरु साधू देखिओ तब रतनु बिकानो लाखा ॥१॥
जब तिस रतन का गाहक गुरोण ने (साधू) साधन सपंन अधकारी देखिआ है तब
वहु रतन लाखोण को विकिआ है भाव यहि तिस अधकारी ने गुरोण को अपना आप ही तिस
रतन हेत अरपन कर दीआ है॥१॥
मेरै मनि गुपत हीरु हरि राखा ॥
दीन दइआलि मिलाइओ गुरु साधू गुरि मिलिऐ हीरु पराखा ॥ रहाअु ॥
हे मेरे मन वा पिआरे हरी ने नाम वा अपने आपका गिआन रूपी हीरा गुपत
राखिआ है॥ जब दीन दइआल हरी ने संत रूप गुरू मिलाया है तब गुरोण के मिलाप ते
सो नाम वा ब्रहम रूप हीरा हमने (पराखा) परख लीआ भाव से जान लीआ है॥
मनमुख कोठी अगिआनु अंधेरा तिन घरि रतनु न लाखा ॥
मनमुखोण की कोठी अंतहकरण मैण अगिआन रूप अंधेरा है तां ते तिनोण ने (घर)
रिदे मैण देह वा बुधी रूप रतन को नहीण लखिआ अरथात नहीण देखिआ है॥
ते अूझड़ि भरमि मुए गावारी माइआ भुअंग बिखु चाखा ॥२॥
(ते) सो गवार संसार रूप (अुझड़ि) अुजाड़ मैण भ्रम कर मूए हैण किअुणकितिनोण ने
माया रूपी (भुअंग) सरप की विसे रूपी विस को चाखिआ अरथात रस लीआ है॥२॥
हरि हरि साध मेलहु जन नीके हरि साधू सरणि हम राखा ॥
हे हरी तेरा हरि हरि नाम जपने वाले जो संतजन नीके हैण सो मेरे को मेलो तिन
संतौण की सरण ते हमारी रखा होवेगी॥
हरि अंगीकारु करहु प्रभ सुआमी हम परे भागि तुम पाखा ॥३॥
हे हरि प्रभू सामी मैण दास को अंगीकार करो भाव अपना जानो वा मेरा (अंगीकारु)
पख करो किअुणकि हम भाग कर तुमारी (पाखा) सरण पड़े हैण॥३॥
जिहवा किआ गुण आखि वखाणह तुम वड अगम वड पुरखा ॥
तेरे गुणों को (आखि) मुख ते जिहवा करके किआ अुचारन करूं अरथात कहे नहीण
जाते हैण किअुणकि तुम वडिओण ते वज़डे अगंम पुरख हो भाव येहि कि मन बांणी से अविसे
हो॥
जन नानक हरि किरपा धारी पाखाणु डुबत हरि राखा ॥४॥२॥
स्री गुरू जी कहते हैण मैण जन पर आपने क्रिपा करी है किअुणकि मैण (पाखाण) पथर
वत कठोर संसार मैण डूबते हूए को आप ने हर परकार से राख लीआ है ॥४॥२॥
पंना ६९७
जैतसरी म ४ ॥
बेनती करते हैण॥
हम बारिक कछूअ नजानह गति मिति तेरे मूरख मुगध इआना ॥

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