Faridkot Wala Teeka
पंना ८७०
रागु गोणड बांणी भगता की ॥
कबीर जी घरु १
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
कोई चुंच गिआनी चरचा हेत आइआ कबीर जी चुपरहे सिखाण पूछा जी अुस नाल
किअुण ना बोले तिस के प्रथाइ अुपदेसु करते हैण॥
संतु मिलै किछु सुनीऐ कहीऐ ॥
मिलै असंतु मसटि करि रहीऐ ॥१॥
हे भाई जे संत मिल जाए तो कुछ अुस से सुणीए जे कहे तुम कुछ सुणावो तौ अुस
के पास राम नाम साथ मिली हूई बांणी कहीए जे कोई असंत अरथात क्रोधी मिल जाए तौ
चुप कर रहीए॥१॥
बाबा बोलना किआ कहीऐ ॥
जैसे राम नाम रवि रहीऐ ॥१॥ रहाअु ॥
हे भाई बोलंा बांणी का तो (किआ) कैसा वा वहु स्रेसट कहीता है जिस बांणी से
राम का नाम (रवि) अुचारणि करते रहीए॥१॥
संतन सिअु बोले अुपकारी ॥
मूरख सिअु बोले झख मारी ॥२॥
जो संतोण से बोलता है सो अुपकारी जन है जो एक के पूछने कर और अनजानोण को भी
खबर हो जाती है मूरख साथ बोलना तौ (झख मारी) खपणा ही है भाव से अुनकी बिसमझी
पर खिझंा होता है॥२॥
बोलत बोलत बढहि बिकारा ॥
बिनु बोले किआ करहि बीचारा ॥३॥किअुणकि मूरख साथ बोलते बोलते क्रोध रूप बिकार मन मैण बढ जाता है जे ना
बोलोगे तौ वहु बिचारा मूरख सासत्र हीन किआ करेगा अरथात आप ही चुप कर
जाएगा॥३॥
कहु कबीर छूछा घटु बोलै ॥
भरिआ होइ सु कबहु न डोलै ॥४॥१॥
स्री कबीर जी कहते हैण जो धारना ते खाली अंतसकरण है सो बिअरथ बोलेगा जो
धारना कर भरिआ हूआ है सो भरे घटि वत कबी नहीण डोलता॥४॥१॥
नाम बिना मानुख सरीर की पशूआण ते भी नीचता और करमगती की कठिनता
पुनह वैराग जनावते हैण॥
गोणड ॥
नरू मरै नरु कामि न आवै ॥
पसू मरै दस काज सवारै ॥१॥