Faridkot Wala Teeka
पंना ९४७
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
रामकली की वार महला ३ ॥जोधै वीरै पूरबांणी की धुनी ॥
अुथानक॥ जोथे वीरै पूरबांणी की (धुनी)१ कथा॥ राजा पुरबांणी के पुत्र हिंदू
राजपूत झल कांगड़े गराम वसने वाले थे एक रांी के जोध औ बीर थे दूजी रांी के और
थे पहिले भाईओण का जंग हूआ पीछे बादशाह हेत डाली आई औ एक अजाइब घोड़ा
लूटा॥ इस वासते अकबर की भेजी हूई फौज से जंग कर फौज मारी पुना आप भी मूए
ढाढीआण वार बनाई तिस की धुनी पर येह वार है॥
सलोकु म ३ ॥
सतिगुरु सहजै दा खेतु है जिस नो लाए भाअु ॥
सतिगुरू (सहजे) शांती आदि गुणों का असथान है जिसको परमेसर सतिगुरोण मेण
भाअु लाए सो गुण लेता है॥
नाअु बीजे नाअु अुगवै नामे रहै समाइ ॥
नाअुण के लीए जो गुरोण मैण सरधा करनी है इह बीजना है तिस के रिदे मैण नाम
(अुगवै) प्रगट होता है औ नाम मैण ही वहु समाइ रहिता है॥
हअुमै एहो बीजु है सहसा गइआ विलाइ ॥
हंता ममता सहिसा इह जो जनमोण का बीज है एह तिस के रिदे से चलिआ गिआ
है भाव इसदा एह हैवहु जगासू सेवा दा हंकार अर गुरां दे ब्रहम रूपता मैण संसा नहीण
करता है॥
ना किछु बीजे न अुगवै जो बखसे सो खाइ ॥
ना वहु हंकरता जाणके (बीजे) करम करता है (ना अुगवै) अुन का मंद फल भाव
दुख होता है जो आतम अनंद गुरोण ने बखशिआ है सो खाता है॥
अंभै सेती अंभु रलिआ बहुड़ि न निकसिआ जाइ ॥
ब्रहम के साथ वहु ऐसे अभेद हूआ है जैसे जल के साथ जल मिल जाता है
(बहुड़ि) फेर अुस जल ते निकसया नहीण जाता भाव जुदा नहीण हो सकता है॥
नानक गुरमुखि चलतु है वेखहु लोका आइ ॥
स्री गुरू जी कहिते हैण एह गुरमुखोण का चरित्र है हे (लोका) जीवो सतसंग मैण आइ
कै तुम देखो॥
लोकु कि वेखै बपुड़ा जिस नो सोझी नाहि ॥
पुना अनअधकारी की बात कहे जिस जीव विचारे को (सोझी) गात नहीण वहु
किआ देखेगा॥
जिसु वेखाले सो वेखै जिसु वसिआ मन माहि ॥१॥
*१ तिसकी पौड़ी इहु है॥ जोधबीर पूरबांणी येहद गलां करीकरारीआण॥ फौज चड़ाई बादशाह अकबर ने
भारीआण॥ धूहोण मियान कढीआण बिजली जिअुण चमकारीआण॥ इंद्र संे अपज़छरां दोहां ळ करन जुहारीआण॥
एही कीती जोध वीर पातशाही गज़लां सारीआण॥ इस छे तुकी साथ छे तुकी मेली॥ सचै तखतु रचाइआ बैसं
कअु जाई॥ इतादि॥