Faridkot Wala Teeka
पंना ११०७
तुखारी छंत महला १ बारह माहा
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
बारां महीने दारा परमेसर अगे गुण कथन सहित जगासू की बेनती करते हैण॥
तू सुणि किरत करंमा पुरबि कमाइआ ॥
हे परमेसर तूं मेरी बेनती सुण जो जो जीवोण ने पूरब (क्रित) करन वाले होके
करमोण को कमाया है॥
सिरि सिरि सुख सहंमा देहि सु तू भला ॥
तत क्रितोण अनुसार जो तूं सुख अर (सहंमा) दुख सिर सिर अरथात भिंन भिंन
करके देता हैण सो हम भला करके माणनते हैण वा सो तूं भला हैण भाव से निरदोस हैण॥
हरि रचना तेरी किआ गति मेरी हरि बिनु घड़ी न जीवा ॥
हे हरी तेरी रचनां मेण मेरी बुधी लाग रही है यां ते मेरी कया गतीहोवेगी तेरी
प्रापती बिनां मैण इक घड़ी मात्र भी जीव नहीण सकती हूं॥
प्रिअ बाझु दुहेली कोइ न बेली गुरमुखि अंम्रितु पीवाण ॥
हे पती तेरे बिनां मैण बहुत दुखी हो रही हूं और मेरा मित्र कोई नहीण है तां ते
इह किरपा करो जो गुरोण दुआरे तेरे नाम अंम्रत को पान करूं॥
रचना राचि रहे निरंकारी प्रभ मनि करम सुकरमा ॥
हे निरंकार प्रभू हम जीव (निरंकारी) निरंकार की अरथात तेरी रचनां मैण रच
रहे हैण और आपका जो मंनन करनां है सो यह करमोण मैण (सु) स्रेसट करम है आप रचनां
को रच रहे हो अर हमारे समान करमाण को स्रेशट करम करके मानते हो॥
नानक पंथु निहाले सा धन तू सुणि आतम रामा ॥१॥
स्री गुरू जी कहते हैण हे (आतम) सभका आपणा आप रूप प्रभू मैण (साधन)
इसत्री आप का (पंथु) रसता (निहाले) देखीता हूं हे (राम) बापक रूप तूं मेरी बेनती
सुण भाव मेरे को प्रापति होईए॥१॥
बाबीहा प्रिअु बोले कोकिल बांणीआ ॥
हे पती आपके जसको जिनां का चित रूपी बबीहा बोलता भाव चिंतन करता है और
कौकल बांणीआण भाव जिहवा जिनकी (आ) वशेश करके राम नामबांणी को बोलती हैण॥
सा धन सभि रस चोलै अंकि समाणीआ ॥
(सा) वहु जीव रूप (धन) इसत्री (अंकि) सरूप मैण समाई है तिसने सभ रस
(चोलै) धार लीए हैण॥
हरि अंकि समाणी जा प्रभ भांी सा सोहागंि नारे ॥
जाण हे हरी प्रभू तेरे को भाई तौ (अंकि) सरूप मैण समावती भई अर (सा) वोही
इसत्री सुहागंी है॥
नव घर थापि महल घरु अूचअु निज घरि वासु मुरारे ॥
हे (महल) पती परमेसुर (नव घर) नवोण गोलकोण वाले सरीर घर को (थापि) रच
करके अपनां घर दसवाण दवार तैने अूचा रचा है तिस दसवेण दुआर रूप घर मैण हे मुरारी
तूं निवास कर रहा हैण॥