Faridkot Wala Teeka
पंना १११८
केदारा महला ४ घरु १
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
मेरे मन राम नाम नित गावीऐ रे ॥
हे मेरे मन वा पिआरे राम नाम को निताप्रति गावणा करीए॥
अगम अगोचरु न जाई हरि लखिआ गुरु पूरा मिलै लखावीऐ रे ॥ रहाअु ॥
हरी अगम है और (अगोचर) इंद्रयोण का अविस है इसी ते लखा नहीण जाता हे
भाई जेकरपूरा सतिगुरू मिलै तो लखाइ देता है॥
जिसु आपे किरपा करे मेरा सुआमी तिसु जन कअु हरि लिव लावीऐ रे ॥
मेरा सुआमी जिसको आप क्रिपा द्रिसटी करता है तिस पुरस को हरी आपणे विखे
ब्रिती लगवाइ देता है॥
सभु को भगति करे हरि केरी हरि भावै सो थाइ पावीऐ रे ॥१॥
सभ कोई हरी की भगती करता है परंतू जो पुरश हरी को भावता है तिस की
भगती (थाइ) प्रवान पावीती है॥१॥
हरि हरि नामु अमोलकु हरि पहि हरि देवै ता नामु धिआवीऐ रे ॥
हरि का हरि नाम जो अमोलक है सो हरी के पास ही है सो हरी आप देवे तो नाम
का धिआवना होता है॥
जिस नो नामु देइ मेरा सुआमी तिसु लेखा सभु छडावीऐ रे ॥२॥
हे भाई जिस पुरस को मेरा सामी आपणा नाम देता है तिस के करमोण का लेखा
सभ छुडाइ देता है॥२॥
हरि नामु अराधहि से धंनु जन कहीअहि तिन मसतकि भागु धुरि लिखि
पावीऐ रे ॥
हे भाई जो पुरश हरिनाम का अराधन करते हैण सो पुरश धंनता योग कहीते हैण
तिन के मसतक का धुरोण ही अुतम भाग लिख पाइआ है॥
तिन देखे मेरा मनु बिगसै जिअु सुतु मिलि मात गलि लावीऐ रे॥३॥
तिनको देख कर मेरा मन प्रफुलत होता है जिसतरां पुत्र को माता मिल कर गल मैण
लगाइ लेती है अर अनंद होती है॥३॥ तां ते ऐसे प्रारथना करीए॥
हम बारिक हरि पिता प्रभ मेरे मो कअु देहु मती जितु हरि पावीऐ रे ॥
हे हरी प्रभू मेरे पिता रूप हम आपके बज़चे हैण हे हरी मेरे को यह मत दीजीए
जिस कर तेरे को प्रापत हो जावेण॥
जिअु बछुरा देखि गअू सुखु मानै तिअु नानक हरि गलि लावीऐ रे ॥४॥१॥
जिस प्रकार बछरे को देख करके गअू (सुखु) अनंदु मानती है स्री गुरू जी कहते हैण
तिसी प्रकार हमारे को अपने गले लगाइ लीजीए भाव अभेद कर लीजीए देह पद मूरती
वासते भी है॥४॥१॥
केदारा महला ४ घरु १