Faridkot Wala Teeka
पंना ९४
रागु माझ चअुपदे घरु १ महला ४
सतिनामु करता पुरखु निरभअु निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर
प्रसादि ॥
हरि हरि नामु मै हरि मनि भाइआ ॥
मंगलाचरन का अरथु प्रथम जपुजी साहिब के आदि मैण करि आए हैण॥ किसी
सम मैण स्री गुरू राम दास जी के दरसन को संत जन आए प्रशन कीए इन सात शबदोण के
प्रशन करता तो भिंन भिंन हैण और भिंन भिंन काल मैण ही प्रशन कीए हैण परंतूआस
सभके प्रशनोण का एक है यां ते इनकी अुथानका एक है और शबद क्रम पूरबक सात हैण॥
प्रशन: है भगवन आप अपनी दसा कथन करीए॥ तिस पर स्री गुरू जी कहते हैण॥
वडभागी हरि नामु धिआइआ ॥
हे भाई हरी जो भगत जनोण के सरब दुखोण के (हरि) नास करने वाला है तिस का
जो हरि नामु है सो वा हरि मैण मेरे मन को भाइआ है॥
गुरि पूरै हरि नाम सिधि पाई को विरला गुरमति चलै जीअु ॥१॥
वज़डे भागोण से मैने हरि नाम को धिआइआ है॥
मै हरि हरि खरचु लइआ बंनि पलै ॥
पूरन गुरोण से मैने हरि नाम की सिधी पाई है भाव नाम की प्रापती हूई है परंतू
हे भाई कोई विरला पुरस ही ऐसे गुरोण की (मति) सिखा के अनुसार चलता है॥१॥
मेरा प्राण सखाई सदा नालि चलै ॥
मैने हरि हरि नाम रूप पले मैण बांध लीआ है भाव एहि कि परलोक के वासते
संग्रह कीआ है॥
गुरि पूरै हरि नामु दिड़ाइआ हरि निहचलु हरि धनु पलै जीअु ॥२॥
मेरा सदा सहाइक है अर प्राण रूप है और प्रलोक मैण साथ चलेगा॥
हरि हरि सजंु मेरा प्रीतमु राइआ ॥हे भाई पूरे गुरोण ने हरि नाम (द्रिड़ाइआ) निहचे कराइआ है सो हरि हरि धनु
अचलु मेरे रिदे रूपी पले मैण प्रापति भया है। जीअु पदु संबोधन है॥
कोई आणि मिलावै मेरे प्राण जीवाइआ ॥
हे भाई पूरब काल मैण ऐसी अुमंग भई कि हरी राजा मेरा मन का सजन और
तन का पारा है॥
हअु रहि न सका बिनु देखे प्रीतमा मै नीरु वहे वहि चलै जीअु ॥३॥
जो कोई मुझ को हरी आण करके मिलावे सो मेरे प्राणोण को जीवते करे॥
सतिगुरु मित्र मेरा बाल सखाई ॥
प्रीतम गुरोण के देखे बिनाण मैण रहि नहीण सकता यां ते प्रेम करके नेत्रोण से नीर के
(वहे) वाहे अरथात नाले वगे चले जाते हैण॥३॥
हअु रहि न सका बिनु देखे मेरी माई ॥