Faridkot Wala Teeka
अब महिमे अर हसने का प्रसंग कहिते हैण॥ राइ महिमा और राइ हसना दोनोण
कांगड़ अर धौले के सरदार थे हसने से कुछ गुनाहु हूआ अकबर ने घर से निकाल दीआ
महिमे की शरण गिआ तिसने अपने घर का मुखतार कीआ वहु दिली टके देंे गिआ वहु
हमेश महिमे को गैर हाजर अर आपको हाजर लिखावै गैर हाजरी के सबब महिमा कैद
हूआ जहां रात्र दिन नजर ना आवे ऐसे भोहिरे मेण पाइ दीआ हसने ने तिस का राज
लीआ एक समेण अकबर शिकार गिआ जंगल मैण एक लकड़ी पै नशानां लगांे को कहा
निशाने पै किसी का तीर न लगा अुस वकत किसी ने सपारश करी कि हे बादशाह महिमा
वडा निसाने बाज है सुन कर तिस को बुलाइआ महिमे ने निशाना बेधा बादशाह खुश हूआ
महिमे ने अपना हाल कहा बादशाह ने फौज दई जाकर हसना कैद कीआ ढाढीआण वार
गाई तिस की धुनी इस वार मैण गुरू जी ने रखी है१ स्री गुरू जी पास सिखोण ने प्रशन
कीआ कि महाराज जीव का आवरन कैसे दूर होवे और परमेशर कैसे रीझे अरथात प्रसंन
होवे? अुत्र॥
सारंग की वार महला ४ राइ महमेहसने की धुनि
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सलोक महला २ ॥
गुरु कुंजी पाहू निवलु मनु कोठा तनु छति ॥
नानक गुर बिनु मन का ताकु न अुघड़ै अवर न कुंजी हथि ॥१॥
मन कोठा है असथूल तन अूपर छत पड़ी हूई है राग दैख वा आसा अंदेसा रूपी
तखते हैण और अगिआन रूपी (निवल) जंदरा लगा हूआ है अर गुरोण के (पाहू) पास
ब्रहम विदिआ रूपी कुंजी है इस वासते स्री गुरू अंगद देव जी कहिते हैण गुरोण से बिनां
मन रूपी कोठे का ताक नहीण खुलता है किअुणकि वहु कुंजी और किसी के हाथ नहीण है भाव
से ब्रहम स्रोत्री ब्रहम नेशटी गुरू से बिनां गिआन परापति नहीण होता है॥१॥
महला १ ॥
न भीजै रागी नादी बेदि ॥
न भीजै सुरती गिआनी जोगि ॥
हे भाई नाम के जपे बिनां राग गाअुंे से बाजे बजाअुंे से और बेद के पड़ंे से
परमेशर प्रसंन नहीण होता है पुनह(सुरती) गिआत बिवहारोण की से और (गिआनी)
सासत्र बोध कर औ असटांग जोग कर भी प्रसंन नहीण होता॥
न भीजै सोगी कीतै रोजि ॥
न भीजै रूपी माली रंगि ॥
नितप्रति सोग करने से भी प्रसंन नहीण होता यथा जैनी सदीव ही सोग रखते हैण
रूप अर माल के (रंगि) अनंद करने से भी नहीण प्रसंन होता है॥
न भीजै तीरथि भविऐ नगि ॥
न भीजै दाती कीतै पुंनि ॥
*१ पौड़ी तिसकी येह है। महमा हसना राजपूत राइ भारे भज़टी॥ हसने बेईमानगी नाल महमे बज़टी॥ भेड़
दुहूं दा मज़चिआ सरवग सफज़टी॥ महमे फते रण गल हसने घज़टी॥ इस पंज तुड़ी गां ने पंथ की पौड़ी
मेली॥ आपे आपि निरंजना जिनि आपु अुपाइआ॥ इतादि