Faridkot Wala Teeka

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वार मलार की महला १
राणो कैलास तथा मालदे की धुनि ॥
तिनका बिरतांत इह है कि दो पहाड़ मैण राजपूत थे तिन के पिता पास धन बहुत
था कैलास देव ने संभाला फिर मालदेव ने जुध करके कैलास देव कैद कीआ बरस रोज
पीछे आधा धन देकर छोड दीआ ढाढीआण वार गाई तिसी तरहां पर इहु वार आठ तुक
की पोड़ी कर अुचारन करी है१॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सलोक महला ३ ॥
गुरि मिलिऐ मनु रहसीऐ जिअु वुठै धरणि सीगारु ॥
गुरोण के मिलंे कर मन आनंद को प्रापति होता है जैसे वरखा होंे से धरती को
सिंगार होता है॥
सभ दिसै हरीआवली सर भरे सुभर ताल ॥
सभी धरती हरीआवली द्रिसट आवती है और (सर) कचे टोभे अर (ताल) पके
(सुभर) लबालब हो कर भरे जातेहैण तैसे ही गुर अुपदेस वरखा कर अुतम मधम
जगिआसूओण के रिदे भरे जाते हैण और गुणों रूपी हरीआवली होइ आवती है॥
अंदरु रचै सच रंगि जिअु मंजीठै लालु ॥
सचे प्रेम विखे तिनका अंतहकरन रचता है अर सचा अनंद होता है जैसे मजीठ
कर रंगा हूआ कपड़ा लाल होता है॥
कमलु विगसै सचु मनि गुर कै सबदि निहालु ॥
सच मनन करने से रिदा कमल प्रफुलत होता है और गुरोण के सबद कर निहाल
होईता है॥
पंना १२७९
मनमुख दूजी तरफ है वेखहु नदरि निहालि ॥
जो मनमुख हैण सो दूजी तरफ हैण अरथात माइआ के पासे हैण द्रिसटी कर देख लेवो
भाव परतख नेत्रोण से वा निरने करके देख लेवो॥
फाही फाथे मिरग जिअु सिरि दीसै जमकालु ॥
फाही मैण फाथे हूए मिरग वत तिन के सिर पुर जमकाल द्रिसट आवता है॥
खुधिआ त्रिसना निदा बुरी कामु क्रोधु विकरालु ॥
(खुधिआ) भुख पदारथोण की त्रिसना धन की औ निंदा इह बुरी है और काम क्रोध
करके एह जीव बिकराल रूप हो रहा है॥एनी अखी नदरि न आवई जिचरु सबदि न करे बीचारु ॥


*१ पोड़ी इह है॥ भरम घोड़ा परबत पैलां सर कर तट अंदर॥ नौ नदी नड़िनवे गंे जल कंबर॥ ढुका
राय अंबीरदेव कर मेघ अडंबर॥ आड़त खंडा गंिआ कैलासे अंदर। बिजली जु झलकांीआण तेगां विच
अंबर॥ मालदेव कैलास ळ बंना कर संबर॥ फिर आधा धन मालदै छडा गड़ अंदर॥ मालदेव जस
खटिआ वाणग साह सकंदर॥ यह आठ तुकी पोड़ी है इस साथ गुरू जी ने आठ तुक पोड़ी मेली॥ 'आपीनै
आपु साजि आपु पछाणिआ'॥ इतादि॥

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