Faridkot Wala Teeka

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किसी ने कहा भगत जी आप हाथ मैण सिमरनी किअुण नहीण राखते हो तिस के
प्रथाइ कहिते हैण॥
सलोक भगत कबीर जीअु के
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
कबीर मेरी सिमरनी रसना अूपरि रामु ॥
कबीर जी कहिते हैण हे भाई मेरी रसना अूपर जो राम वस रहा है अरथात जो
नाम का अुचारन करना है सोई हमारी (सिमरनी) माला है॥
आदि जुगादी सगल भगत ता को सुखु बिस्रामु ॥१॥
आगे पीछे सरब समेण मैण जो भगति हूए हैण औ अब हैण तिन सभनोण कौ नाम के हीजपने से सुख मैण बिस्राम हूआ है॥ वा स्री कबीर जी कहिते हैण॥ हे भाई जो मेरी तेरी
चिंतन करनी है तिस मैण (रसना) अनंद नहीण होता तां ते मेरी तेरी ते अूपर जो राम है
तिसी कौ सिमरने से सुख होता है जो सदा आगे पीछे भगत हूए हैण तिनोण को भी मेर तेर से
रहित हो कर सुख सरूप मैण बिस्राम भाव इसथिती भई है॥ यथा-मेर तेर जब इनहि
चुकाई। तां ते इस संगि नहीण बैराई। (गअुड़ी म: ५)॥१॥
कबीर मेरी जाति कअु सभु को हसनेहारु ॥
स्री कबीर जी कहिते हैण हे भाई मेरी जुलाहे की जाति को नीच जान कर सभ कोई
हसने हार होता है अरथात सभु कोई हासी करता है॥
बलिहारी इस जाति कअु जिह जपिओ सिरजनहारु ॥२॥
परंतू मैण तो इसी जाती पर बलिहारने जाता हूं जिसमैण जनम ले कर सिरजनहार
के नाम को जपा है भाव तां ते इह जाती सभ ते अुतम है॥२॥
कबीर डगमग किआ करहि कहा डुलावहि जीअु ॥
स्री कबीर जी कहिते हैण हे भाई डांवाणडोलना वा टेढे मारग मैण चलंा किअुण करता
हैण और किअुण अपने (जीअु) रिदे कौ डोलावता हैण भाव येह वाहिगुरू के जाप से चितको
डोला कर दैत मारग मैण किअुण प्रविरत होता हैण॥सरब सूख को नाइको राम नाम रसु पीअु ॥३॥
तांते सरब सुखोण का जो (नाइको) सामी राम है तिसी के नाम अंम्रत रस को पान
कर भाव येह नाम के जपने करके ही तेरी कलान होइगी॥३॥ नाम बिनां पदारथोण की
निसफलता अुचारन करते हैण॥
कबीर कंचन के कुंडल बने अूपरि लाल जड़ाअु ॥
स्री कबीर जी कहिते हैण हे भाई जेकर सरन के कुंडल बी बने हूए होवैण औ तिनोण
पर लालोण का जड़ाअु भी कीआ हूआ होवै भाव येह है कि ऐसे भूखनोण को पहिर कर अपनी
बिभूती संयुकत भी होवै॥
दीसहि दाधे कान जिअु जिन मनि नाही नाअु ॥४॥
परंतू ऐसे ईसरज वाले पुरश के कुंडल भी हम को (दाधे) जले हूए काने जैसे
द्रिसट आवते हैण किअुणकि जिनोण पुरशोण के मन मैण वाहिगुरू का नाम नहीण है भाव येह ओह
अूपर से चिलकते हैण अरथात सुंद्र हैण परंतू तिन के बीच पापोण रूप भसम होती है॥४॥
कबीर ऐसा एकु आधु जो जीवत मिरतकु होइ ॥

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