Faridkot Wala Teeka
पंना १३९१
सवईए महले दूजे के २
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
अब सोई वेद भज़टोण के रूप से स्री गुरू अंगद साहिब दूसरी पातिशाही जी का
सुजसु अुचारन करते हैण॥
सोई पुरखु धंनु करता कारण करतारु करण समरथो ॥
सरब जगत के कारण जो महतत आदी हैण तिनोण का करता जो ब्रहमा तिन
ब्रहमादिक ईसरोण के करन को समरथ सोई करता पुरख धंन है॥
सतिगुरू धंनु नानकु मसतकि तुम धरिओ जिनि हथो ॥
सो सरूप स्री सतिगुरू नानक साहिब जी धंनिता जोग भए हैण जिनोण ने तुमारे
मसतक पर हज़थ धारन कीआ है॥
त धरिओ मसतकि हथु सहजि अमिअु वुठअु छजि सुरि नर गं मुनि बोहिय
अगाजि ॥
तिस स्री सतिगुर जी ने जब तुमारे मसतक पर हज़थ धरिआ तब सहजे ही अुपदेस
अंम्रित (वुठअु) बरसावणा कीआ आप से (छज) सोभते भए हो पुना तिसी नाम अंम्रित ते
(सुरि) देवते (नर) मनुख औ मुनी जो (गं) समूह है सो सभी (अगाजि) प्रगट जसरूप(बोहिय) सुंगधी वा गौरवता संजुकत हूए हैण॥
मारिओ कंटकु कालु गरजि धावतु लीओ बरजि पंच भूत एक घरि राखि ले
समजि ॥
काल रूपी (कंटकु) दुखदाइक शत्र को तुमने गरज करके मार लीआ है औ मन को
संकलपोण मैण धावणे से बरज लीआ है औ कामादी पंच भूत जो (समजि) सं+अज=भली
प्रकार अजीत थे तिन को एक रिदे घर मैण राख लीआ भाव रोक लीआ है॥
जगु जीतअु गुर दुआरि खेलहि समत सारि रथु अुनमनि लिव राखि निरंकारि
॥
गुरोण दारे अुपदेश ले कर जगत को तुमने जीत लीआ है तिसी ते आप समता रूपी
(सार) बाजी खेल रहे हैण किअुणकि (अुनमनि) तुरीआ सरूप निरंकार मैण मन की ब्रिती
(रथु) भाव प्रवाह आपने राखिआ है॥
कहु कीरति कल सहार सपत दीप मझार लहणा जगत्र गुरु परसि मुरारि
॥१॥
स्री कल सहार जी कहते हैण मुरारी रूप जो स्री गुरू नानक साहिब जी हैण तिनोण को
स्री लहिंा जी (परस) मिल करके सपत दीपोण के बीच सरब जगत के गुरू स्री गुरू अंगद
सहिब जी भए हैण तां ते हे मन ऐसेसतिगुरोण की कीरती को कहु भाव अुचारन कर॥१॥
जा की द्रिसटि अंम्रित धार कालुख खनि अुतार तिमर अगान जाहि दरस
दुआर ॥