Faridkot Wala Teeka

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सिखोण ने बेनती करी के हे गुरू जी लोक प्रसिध है कि वज़डे पुरसोण के मुख से महीने
के प्रिथम दिन का नाम स्रवन करने से महीना भर सुख होता है ऐसे जान कर हमारी एह
बेनती है कि जैसे आप के मुखारबिंद से महीने स्रब सुने जावेण सरब सिखन को सरब
सुखदाइक बानी क्रिपा करके अुचारीए जो बाहज बारां माहे हैण तिनसे प्रविरती हट कर
आपके बारां माह मैण सिखोण की प्रविरती होवे ऐसी बेनती मान कर गुरू अरजन साहिब जी
ने माझ मै बारां माह अुचारन कर महातम कहा के जो सिखु महीने के आदि के दिन सरधा
धार कर स्री गुरूग्रंथ साहिब जी के हजूर जाकर यथा शकित प्रसादि वा भेटा रख कर
बारां माह पड़े वा सुनेगा तिस सिख के सरब कारज पूरन होवेणगे गुरोण के आगे बेनती
करने के प्रकार की पौड़ी मंगलाचरन रूप कहते हैण॥
बारह माहा माणझ महला ५ घरु ४
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
किरति करम के वीछुड़े करि किरपा मेलहु राम ॥
जो पूरब हम ने मंद करम (किरति) करा है तिस अनुसार विछड़े हैण हे गुरो
किरपा करके मेरे को राम के साथ मेलो॥ जे गुर कहे कि तीरथ जात्रादि सुभ करम तुम
पहले करो तिस पर कहते हैण॥
चारि कुंट दह दिस भ्रमे थकि आए प्रभ की साम ॥
(चारि कुंट) चारोण कूंंां पूरब पछम अुतर दखण एह हैण मुख जिनोण मैण सो हम दसोण
दिसा मै भरमे हां हे प्रभो थाक कर आप की (साम) सरण आए हैण। जे गुर कहे तुम को
मनुख जनम मिला है फिर किअुण दुखी हो परमेसर भजन से बिना मानुख जनम की
निसफलता देखावते हैण॥
धेनु दुधै ते बाहरी कितै न आवै काम ॥
जल बिनु साख कुमलावती अुपजहि नाही दाम ॥
जैसेगअु दुध से बिना किसी काम नहीण आवती पुना जैसे (साख) खेती जल से
बिना मुरझाइ जाती है॥ (दाम) रुपए नहीण अुपजते भाव यहि कि नहीण वज़टीते॥
हरि नाह न मिलीऐ साजनै कत पाईऐ बिसराम ॥
तैसे ही मानुख जनम को पाइ कर जब हरी साजन को ना मिलीऐ तब (बिसराम)
इसथिरता को (कत) कहां पाअुंा है॥
जितु घरि हरि कंतु न प्रगटई भठि नगर से ग्राम ॥
जिस (घरि) अंतहकरण मै हरी पती प्रगट नहीण हूआ वहु नगर अरथात वज़डे
कसबे वत राजादिकोण के सरीर (ग्राम) जिसमै थोरे घर होण तदव कंगालोण के सरीर सभी भठ
जैसे तपते हैण। सांती नहीण आवती॥
स्रब सीगार तंबोल रस संु देही सभ खाम ॥
सरब सीगार (तंबोल) पान और जितने रस हैण जिन मै लाग कर परमेसर को
भुलाइ दीआ है (संु देही) सरीर के सहित सभ (खाम) कचे हैण भाव यहि कि नासवंत
हैण॥
प्रभ सुआमी कंत विहूंीआ मीत सजं सभि जाम ॥

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