Faridkot Wala Teeka

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माझ महला ५ दिन रैंि
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सेवी सतिगुरु आपणा हरि सिमरी दिन सभि रैं ॥
आपणा सतिगुर सेवन करके सरब दिन रात्र मैण हे हरी तेरा सिमरन करूं॥
आपु तिआगि सरणी पवाण मुखि बोली मिठड़े वैं ॥
और हंकार को तिआग कर सरणी पड़ूं पुना मुखसे बचन मीठे बोलूं॥
जनम जनम का विछुड़िआ हरि मेलहु सजंु सैं ॥
हे हरी सजन मुझ जनम जनम के विछुड़े हूए को अपने (सैं) साथ मेलीए॥
जो जीअ हरि ते विछुड़े से सुखि न वसनि भैं ॥
जो जीव हरी से विछुड़े हूए हैण सो (भैं) हे भैंे हे सखी ओणहु सुख साथ नहीण वसते
वा सरीर नगर मैण सुख साथ नहीण वसते हैण॥
हरि पिर बिनु चैनु न पाईऐ खोजि डिठे सभि गैं ॥
हरी पती से बिनां चैन नहीण पाईता किअुणकि सरब (गैं) रसते वा अकास
अुपलखत सरगादि सभ लोक खोज अरथात विचार कर देखे हैण भाव एहि कि सुख नहीण
पाईता ॥
आप कमाणै विछुड़ी दोसु न काहू दें ॥
परंतू दोस किसी कअु नहीण देंा किअुणकि अपने करम करे अनुसार विछड़ी हां॥
तां ते ऐसे बेनती करे॥
करि किरपा प्रभ राखि लेहु होरु नाही करण करें ॥
तांते हे प्रभू दया करके रख लै और करणे कराअुंे वाला कोई नहीण॥
हरि तुधु विणु खाकू रूलंा कहीऐ किथै वैं ॥
हे हरी तेरे से बिनां धूर मै रुलंा होता है अपने दुखोण के बचनकिस पास
कहीए॥
नानक की बेनतीआ हरि सुरजनु देखा नैं ॥१॥
स्री गुरू जी कहते हैण मेरी एह बेनती है कि हे हरी (सुरजनु) चत्र तेरे को नेत्रोण
से देखता रहां। भाव एह कि जहां द्रिसटी जावे तेरे मैण ही रहे॥१॥
जीअ की बिरथा सो सुणे हरि संम्रिथ पुरखु अपारु ॥
हरी जो समरथ पुरख अपार है सो जीव की (बिरथा) पीड़ा सुनता है॥
मरणि जीवणि आराधंा सभना का आधारु ॥
सरब जीवोण का जो मरण जीवण काल मै आसरा है सो अराधना करीए॥
पंना १३७
ससुरै पेईऐ तिसु कंत की वडा जिसु परवारु ॥
जिस का वज़डा परवार है तिस पती की लोक प्रलोक मै जीव रूपी इसत्री रखी हूई
है॥
अूचा अगम अगाधि बोध किछु अंतु न पारावारु ॥
अूचा है अगम है (बोध) गिआन अथाह है पार अुरार का किछु अंत नहीण॥

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