Faridkot Wala Teeka
वार माझ की तथा सलोक महला १
मलक मुरीद तथा चंद्रहड़ा सोहीआ की धुनी गावणी ॥
गुरू अरजन साहिब जी ने जब स्री गुरू ग्रंथ साहिब जी की बीड़ करी तब गुरू
हरिगोबिंद साहिब जी ने अरज करी कि हम को बांणी रचन की किआ आगिआ है आपने
तो हुकम दीआ है के स्री गं्रथ साहिब परमुदावणी मुहर करी गई है और इस मैण बांणी न
पाई जावे तथ स्री गुरू जी ने हुकम दीआ तुम ने जंग अखाड़े करके दुशटोण का नाश करनां
और धरम संबंधी सूरमिआण की वारां सुन के अुनकीआण धुनां वारां मैण रखणीआण। तिस
आगिआ को प्रमाण करके गुरू हरि गोबिंद जी ने तखत अकाल बुंगे पर बैठ कर बुहत
सूरमिआण कीआण वारां सुनीआण तिन मैण से नअु धुना पसिंद करके नअु वारां मैण रख दईआण
सो प्रथम धुन माझ की वार मैण रखी है तिस का एहु बिरतांत है अकबर बादशाह ने हुकम
दीआ कि जो हमको सोककी बात सुनावेगा अुसको सजा होवेगी अकबर के दो सूबे मुख थे
एक मरीद नाम मालक जाती का (तथा) तैसे ही चंद्रहड़ा नाम सोही जाता का था तिन का
परसपर विरोध बहुत था एक समेण काबल आकी हूआ तब सरकारी हुकम से तिस देसके
बंदोबसत वासते मुरीद नाम मुसाहिब पाना का बीड़ा और खंडा अुठाइके चड़्हा। अूहां काल
विसेस लगंे से तिस पर चंद्रहड़ा ने चुगली खाई कि अूहां ही हजूर का अलाका दबाइ
कर बैठ गिआ है राजा ने चंद्रहड़ा को हुकम दीआ कि तुम अुसको पकड़ लिआओण तब
चड़्हाई करी और अुसको भी इधर का सभ हालु मालूम हो गिआ वहु आगे से लड़ने को
तिआर हूआ दोनोण आपस मैण लड़ कर म्रितू हूए और मुसाहिबोण ने विचारा कि एह अती
सोक की खबर है जो सुनावते हां तौ सजावार होवेणगे न सुनावेण तो जब पातसाहु सुनेगा तब
हमको खराबी होवेगी कि तुम ने किअुण नहीण खबर दई एह विचार कर ढाडीआण को
समझाइ कर माझ राग मै तिनकी वार बनाइ कर पातशाह को सुनवाई तब अुस ने जान
लीआ कि मेरे दोनोण मुसाहिब मर गए अुनकी जगा और कीए वहु धुनी गुरू हरिगोबिंद
साहिब जी ने माझ की वार मै रखवाई है धुनी नाम गाअुंे का वही प्रकार रखा है॥
पअुड़ी तिस की एह है॥११॥ पअुड़ी॥ काबल विचि मुरीदखाण चड़िआ वडजोर॥चंद्रहड़ा लै
फौज को दड़िआ वड तौर॥ दुहां कंधारां मुह जुड़े दुमामे दौर॥ शसत्र पजूते सूरिआण सिर
बंधे टौर॥ होली खेले चंद्रहड़ा रंग लगे सोर॥ दोवेण तरफां जुटीआण सर वगन कौर॥ मैण भी
राइ सदाइसां वड़िआ लाहौर॥ दोनोण सूरे सामणे जूझे अुस ठौर॥ एह आठ तुक की पअुड़ी
है इस वासते इसके साथ गुरू जी ने आठ तुक की पअुड़ी मेली है॥ तू करता पुरख
अगम है आप स्रिसटि अुपाती॥
पौड़ीआण मई छंदोण कर सूरमिआण का जस कथन करीए जिसमै सो वार है माझ राग
मै परमेसर जस करेणगे आदि मैण गुरोण की अुसतती रूप मंगलाचरन करते हैण॥
सति नामु करता पुरखु गुर प्रसादि ॥
सलोकु म १ ॥
गुरु दाता गुरु हिवै घरु गुरु दीपकु तिह लोइ ॥
गुरू ही नाम के दाता हैण और गुर (हिवै) वरफ अरथात शांती के घर हैण॥ पुना
गुरू ही तीन लोक (दीपकु) प्रकाश करने वाले हैण भाव एह कि ब्रहम गिआन के देंे वाले
हैण॥
अमर पदारथु नानका मनि मानिऐ सुखु होइ ॥१॥