Faridkot Wala Teeka

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देखो आप ही आप पिआरा सरबत्र बरत रहा है तिस के भय करके अगनि कासट
को जलाइ नहीण सकता है एह भी बकरी शेर इकठे कीएहैण॥
आपे मारि जीवाइदा पिआरा साह लैदे सभि लवाइआ ॥३॥
आपे ही पिआरा मार कर जीवाअुता है जीव जितने सास लेते हैण सो सभी तिस के
लवाइआ भाव दिवाए होए लेते हैण॥३॥
आपे तांु दीबांु है पिआरा आपे कारै लाइआ ॥
आपे ही पिआरा (तांु) बल रूप है आपे ही (दीबांु) आसरा रूप है आपे ही
सभ को कामोण मेण लगाइआ है॥
जिअु आपि चलाए तिअु चलीऐ पिआरे जिअु हरि प्रभ मेरे भाइआ ॥
जिस तरां मेरे हरी पिआरे प्रभू को भाया है औ जिस तरां जीवोण को चलाया है तिसी
तरां चलीता है॥
आपे जंती जंतु है पिआरा जन नानक वजहि वजाइआ ॥४॥४॥
आपे ही जंत्री रूप भाव साज बजावने वाला है औ आप ही पिआरा जंत्र भाव साज
रूप है स्री गुरू जी कहते हैण जैसे तिसने बजाया भाव जीवोण को बुलाया है तैसे ही बजते
भाव बोलते हैण वा जिधर प्रेरता है तिधर जाते हैण॥४॥४॥
सोरठि महला ४ ॥
आपे स्रिसटि अुपाइदा पिआरा करि सूरजु चंदु चानांु ॥
आपे ही पिआरा स्रिसटी को अुतपंन करता है और स्रिसटी मेण सूरज चंद का
चांदना भी आप करता है॥आपि नितांिआ तांु है पिआरा आपि निमाणिआ माणु ॥
आप ही पिआरा नितानोण का तान है आप ही निमानोण का मान है॥
आपि दइआ करि रखदा पिआरा आपे सुघड़ु सुजाणु ॥१॥
पारा प्रभू आपे दया करके रखिआ करता है आपे ही चतुर अर (सुजाणु) सुसटू
गात वाला भाव सरब है॥१॥
मेरे मन जपि राम नामु नीसांु ॥
सतसंगति मिलि धिआइ तू हरि हरि बहुड़ि न आवण जाणु ॥ रहाअु ॥
हे मेरे मन परगट राम नाम कौ जप सतसंग मेण मिल कर तूं हरि हरि नाम का
धिआअुना कर (बहुड़ि) फिर तेरा आअुना जाना नहीण होगा॥
आपे ही गुण वरतदा पिआरा आपे ही परवाणु ॥
पारा आपे ही (गुण) भाव रजो तमो सतो रूप हो कर बरत रहा है अर आपे ही
तिस रचना को मनजूर करता है॥
आपे बखस कराइदा पिआरा आपे सचु नीसांु ॥
आप ही पिआरा गुरोण से बखसिस कराअुता है अर आपे ही नाम रूपी सचा
(नीसांु) परवाना है॥
आपे हुकमि वरतदा पिआरा आपे ही फुरमाणु ॥२॥
आपे ही पिआरा हुकम मेण वरतता है अर आपे ही (फुरमाणु) हुकम रूप है॥२॥
आपे भगति भंडार है पिआराआपे देवै दांु ॥

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