Faridkot Wala Teeka

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दुखहरण दीन सरण स्रीधर चरन कमल अराधीऐ ॥
जो दीन जनोण को सरण आए देख कर तिन के दुखोण को हरनेहारा है तिस स्री धर के
चरन कमलोण को अराधीऐ॥
जम पंथु बिखड़ा अगनि सागरु निमख सिमरत साधीऐ ॥
अती (बिखड़ा) कठन जो जम का रसता है औरु अगनी का समुंद्र जो संसार है
जिसके एक निमख मात्र सिमरन करने से साध लईता है भाव अगनी सागरु औरु जम
मारग को अुलंघ जाईता है॥
कलिमलह दहता सुधु करता दिनसु रैंि अराधो ॥
पापोण को दगध करणेहार औरु मन कौ सुध करता हरीका नामु है हे मन तिस को
दिने रात ही अराधो॥
बिनवंति नानक करहु किरपा गोपाल गोबिंद माधो ॥१॥
स्री गुरू जी कहते हैण ऐसे बेनती कर हे गोपाल गोबिंद माधो मुझ पर अपनी क्रिपा
करो॥१॥
सिमरि मना दामोदरु दुखहरु भै भंजनु हरि राइआ ॥
हे मन दामोदर जो दुखोण के हरने हारा है तिस भै भंजठ हरी राजा कौ सिमरु॥
स्रीरंगो दइआल मनोहरु भगति वछलु बिरदाइआ ॥
(स्रीरंगो) लछमी को अनंद देने हारा दिआलू जो (मनोहरु) सुंदर सरूपु है पुना
तिस का भगत वछलु (बिरद) प्रणु आदिसे ही चला आया है॥
पंना २४९
भगति वछल पुरख पूरन मनहि चिंदिआ पाईऐ ॥
तिस भगतोण के पिआरे पूरन पुरख का सिमरन करने से मन बांछत फल कौ
पाईता है॥
तम अंध कूप ते अुधारै नामु मंनि वसाईऐ ॥
हे मन जब तिस का नामु रिदे मैण वसाईऐ तब वहु संसार रूपी अती तम रूप
अंधेरे खूहे से अुधार देता है॥
सुर सिध गं गंधरब मुनि जन गुण अनिक भगती गाइआ ॥
देवतिओण सिधोण पुना गंोण गंधरबोण रिखी जनोण ने अरु अनेक भगतोण ने जिसके गुणों
को गायनकीआ है॥
बिनवंति नानक करहु किरपा पारब्रहम हरि राइआ ॥२॥
स्री गुरू जी कहते हैण हे मन तिस आगै ऐसे बेनती कर हे पारब्रहम हरी राइआ
मेरे पर अपनी क्रिपा करो॥२॥
चेति मना पारब्रहमु परमेसरु सरब कला जिनि धारी ॥
हे मन तिस पारब्रहम परमेसर कौ (चेति) सिमरु जिसने सरब मे अपनी शकती
धारी होई है॥
करुंा मै समरथु सुआमी घट घट प्राण अधारी ॥
सो समरथ सामी (करुंा मै) क्रिपा सरूप है औ घट घट मैण प्राणोण का (अधारी)
आसरा हो रहा है॥
प्राण मन तन जीअ दाता बेअंत अगम अपारो ॥

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