Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) १४
राशि दूसरी चज़ली
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
अथ श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे दुतिय रास लिखते ॥
अरथ: इक अकाल पुरख ते सतिगुरू जी दी क्रिपा नाल हुण श्री गुर प्रताप सूरज
ग्रंथ दी दूसरी रास लिखदे हां।
स्री* वाहिगुरू जी की फते+ ॥
अरथ: जगत दे पूज वाहिगुरू जी दी जै है (जो सरब विघन विनाशक है++)
अंसू १. ।मंगल, श्री गुरू रामदास जी दी गुरिआई॥
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सैया: बेदी बिभूखन बेदिकै जाणहि को, बेद कहै नहिण तीन प्रछेदी।
छेदी कुचाल कुचीलनि की, कलि नाम जपाइ कुरीतिन खेदी।
खेदी ना होत अखेद अुदोतक, दे अुपदेश जु रूप अभेदी।
भेदी बनावति कैवल के, गुर नानक पाइ प्रणाम निबेदी ॥१॥
बेदी = वेदीआण दा कुल। ।संस: वेदी = जो वेद दा पंडित होवे॥ बिभूखन =
गहिंा। किसे कुल दा गहिंा होण तोण मुराद है, अुस कुल विज़च ऐना शिरोमणीहोवे
कि अुसदे अुस विच होण नाल कुल शोभा योग हो गई होवे। ।संस: विभूखं॥
बेदिके = जाणके। भाव, इह गल पहिले समझ लओ, फेर अगली समझो। ।संस:
विद = जाणना॥
बेद = हिंदूआण दे मुज़ख चार पुसतक जो आसमानी समझे जाणदे हन। प्रछेदी =
कज़टिआ जाणा।
नहिण तीन प्रछेदी = जिन्हां दे सरूप ळ देश काल वसतू वंडदा नहीण। गुर नानक
देव जी दा आपा-निज सरूप-इन्हां तिंनां देश, काल, नमिज़त, या देश काल वसतू
तोण नहीण बणिआ ना इन्हां तिंनां दा मुथाज है।
(अ) जिस ळ भूत भविज़खत वरतमान त्रैआण कालां तोण सुतंत्रता है, अरथात सदा
जागती जोत, इक रस रूप है अुन्हां दा। ।संस: प्रछेदन = कज़टंा।॥ *
*श्री = जगत दा पूज; जिसदी जगत पूजा करदा है।
श्री पद दे होर अरथछ-प्रताप, दौलत, सुंदरता, चमक, प्रकाश, खूबी, शुभ गुण, धरम अरथ
काम त्रैए पदारथ, महानता, प्रभुता, आतम शकती, समझ, शोभा, जलाल, इक सतिकार दा पद,
शोभा युकत, प्रसिज़ध, सतिकार योग। ।संस:॥ धातू है श्रि = सेवा करनी। इसतोण श्री = जिसळ
जगत पूजदा है, जगत दा पूज।
+श्री: गु: नानक प्रकाश दे आदि दोहे विच ੴ सतिगुर प्रसादि
ते वाहिगुरू जी कीफते इकज़ठे मंगल कीते सन, एथे पहिलां ੴ सतिगुर प्रसादि गुरू क्रित
मंगल लिखके अथ ते लिखते दूसरी रास दा अरंभ लिखिआ है, ते फेर वाहिगुरू जी की फते
दा गुरू क्रित मंगल कीता। ॴ दुहां विच सांझा रिहा।
++जिसदी सदा जै है अुह सुते विघन विनाशक है।