Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) १४
राशि पंजवीण चज़ली
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
स्री वाहिगुरू जी की फतह ॥
अथ पंचम रासि कथन॥
अंसू १. ।मंगल। दिज़ली शाह पास॥
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१. संत अवतार-दसोण गुरू साहिबान दा-मंगल
दोहरा: तार लगी अुर प्रेम की,
सिमरि नाम करतार।
तारन कोण समरज़थ सो,
नमो संत अवतार ॥१॥
तार = सुरत दा लगातार लगे रहिंा॥
प्रेम की = प्रेम दी। तार = लिव दी तार।
प्रेम तार लगी = लगातार रज़ब दे धान विच लगे रहिंा।
तारन को = (जगत रूपी सागर तोण) पार करन ळ।
संत अवतार = अुह अवतार जो संतां दी रज़खा ते अुतपती
वासते होइआ होवे। भाव गुरू साहिबानतोण है। (अ) संतताई
या भगती दा अवतार। (ॲ) संत रूपी अवितार। सज़चे संत विच
साईण दी कला हुंदी है। सज़चा संत जगत दा अुधार करदा है,
इस करके संत ळ नित अवितार कहि लैणदे हन। इअुण इह
संत दा मंगल है।
अरथ: करतार दा नाम सिमरण (विच जिन्हां दे) हिरदे दी (लिव) तार लग रही
है (ते जो नाम दान दे के जगत) तारन ळ समरज़थ हन अुहनां संत अवताराण
ळ मेरी नमसकार होवे।
२. कवि-संकेत मरयादा दा मंगल।
चित्रपदा छंद: सारसुती कर बेंवती!
शुभ देहु मती लखि सार असार।
सार संभारि, करो प्रतिपार,
अुदार बडी सुख दास दतार।
तारन ईशर पूरन श्री मुख
बंदति अंम्रित बाक अुचारि।
चारु बिलोचन साथ निहारि
अुतारति पार अपार संसार ॥२॥