Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) १४
राशि छीवीण चज़ली
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ॴ स्री वाहिगुरू जी की फतह ॥
अथ शटम रास प्रारंभते॥
अरथ: हुण छेवीण रासि दा आरंभ कीता जाणदा है।
अथ जुज़ध प्रबंध कथन*॥
।प्रबंध = काव रचनां। मग़मून॥
अरथ: हुण जुज़धां दे मग़मून दा कथन करदा हां।
अंसू १. ।मंगल। नारद आगमन॥
ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगलाअंसू>>२
१. इश देव-अकाल पुरख दा-मंगल।
दोहरा: सति चेतन आनद इक असति भांति प्रिय+, पूर॥
नभ सम सभि महि, शुभ करन, गन मंगल को मूर ॥१॥
सति चेतन आनद = देखो श्री गुर नानक प्रकाश पूर: अधाय १ अंक ३ दे
पदारथ।
अरथ: इक (अकाल पुरख जो) सति चेतन आनद (है अर जो) असति, भांति, प्रिय
(रूप होके) सभनां विच अकाश वाणू पूरन हो रिहा है, (अुही) शुभता दे
करने वाला है, अते सारे मंगलां दा मूल है (इस करके मैण अुस दा सिमरन
रूप मंगल करदा हां)।
भाव: अकाश दे दो गुण हन विआपकता ते असंगता। विआपकता दा ग़िकर कवी
जी ने सपशट कीता है कि अकाश वाणगू अुह सभनां विच परी पूरन है,
असंगता वाले खिआल ळ आप ने साफ नहीण दज़सिआ, पर गुरू आशे वाली
असंगता जो मानो है भी ते नहीण भी अगले वाकाण विच दरसाई है, जद किहा
है कि अुह शुभता दे करने वाला ते मंगलां दा मूल है। अकाश जड़ होण
करके जीकुं असंग है, प्रमातमां चेतन होण करके अुस तर्हां असंग नहीण, पर
जिवेण राग दैख विच फसे जीव असंग नहीण रहि सकदे तिवेण प्रमातमाअसंग
रहिंे विच असमरथ नहीण, अुह असंग है, ऐअुण असंग हुंदा होया वी अुह
मंगलां दा मूल ते नेकीआण दा करनहार है। इस विशे ते विशेश विचार
गुरमत अनुसार इस प्रकार है:-
*पा:-अथ जुज़ध प्रसंग बरनन।
+सति चेतन आनद, असति भांति प्रेय दे जो अरथ कवी जी ने आप कीते हन अुह इअुण हन-
सति चेतन आनद प्रज़तछ। असति भांति प्रिय आतम लछ। इह तीनहु जित कित द्रिशटावैण॥ इन
बिहीन कित कछु न जनावै॥ असती है सु पदारथ साचु॥ चित भांती परकाश अुज़बाच॥ पाइ
पदारथ प्रिय आनद॥ इम तीनहु सभि महि बरतंद॥
।रुत ५ अंसू ४७ अंक ३४॥