Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) १४

राशि अठवीण चज़ली
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
श्री वाहिगुरू जी की फते ॥
अथ अशटमि रासि कथन ॥
अंसू १. ।मंगल। बिधी चंद दी आदि कथा॥
ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>२
१. इश देव-अकाल पुरख दा-मंगल।
दोहरा: जिसि बिन जाने ब्रिंद दुख, जाने अनद बिलद।
पारब्रहम परमातमा बंदौण जुग कर बंदि ॥१॥
बिन जानै = बिना जाणे, नांजाणन करके।
बिलद = वज़डा, बहुत, अुज़चा।
अरथ: जिसळ नां जाणन करके सारे दुज़ख (वापरदे हन, पर जिस दे) जाणिआण अुज़चा
अनद (प्रापत) हुंदा है, (अुस) पारब्रहम परमातमां ळ दोवेण हज़थ जोड़ के
नमसकार करदा हां।
भाव: इथे नां जाणना ते जाणना दा अरथ अुह जाणना नहीण है जो मन ळ प्रापत
हुंदा है। जो इस गिआन दा विशा होवेगा सो हज़द वाला होवेगा; देश, काल
नमिज़त वाला होवेगा; आदि अंत वाला होवेगा। इस गिआन दे गिआनी ळ
श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी विच पड़्हिआ तां आखदे हन पर गिआनी नहीण
आखदे। वाच गिआनी ळ इह अुज़चा सुख प्रापत नहीण हुंदा, जो मन बुज़धि
दे टिक जाण सिध या सुध दारा अनुभव विच जाके, आपे दे रस विच
रसीआ होके प्रापत हुंदा है।
२. कवि-संकेत मिरयादा दा मंगल।
कबिज़त: चंद्रमां बदन वारी, अुज़जल रदनवारी,
बिघन कदन वारी, दाती है शरन की।
चंपक बरन वारी, कविता बरन वारी,
सुशट बरन वारी, अुर मेण धरनि की।
कुंडल करनि वारी, सुमति करनि वारी,
कुमल करनि वारी, गती है करिनि की।
लोचन हरन वारी,दरनि अरिनि वारी,
दोशनि हरिनि वारी, महिमा चरन की ॥२॥
दोहरा: भवा, भै हरा, भव भरी, बली बाहु सम शेर।
हाथ जोरि मम बंदना, बर करि हा शमशेर ॥३॥
बदन वारी = मुज़ख वाली। कदन वारी = कज़टं वाली।
बरन वाली = रंग वाली। बरन वारी = वरणन करन वाली।

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