Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २५
तनवै = जिस दे अंग सुहल, कोमल ते पतले होण। सुबक ते सुहल ।संस:
तनी॥
(अ) तन वै तरनी = अुह जिस दा तन (तरनी =) सदा जुआन है।
(ॲ) तन = शरीर+वै = (बय) आयू, अुमरा। तरनी = जुआन। तनवै
तरनी = सरीर वलोण जुआन अुमरा दी है। देखो ऐन २ अं: ३६ अंक २ बय तन
तरनी।
तरनी-जुआन। १६ तोण ३० वरहे दी विचली अुमरा दी जुबा इसत्री।
(अ) सदा जुआन।
अरथ: (हे) बाणी! (तूं) बिघना (रूपी) समुंदर दी बेड़ी हैण, (तदोण तां कवीआण दी
पत दी बड़ी रज़खक वरणनकीती गई हैण।
(तूं) शरन आए (विज़दा अभिलाखी ळ) सुख देण वाली (ते अुसदी) प्रतिपाला करन
वाली हैण, (फिर इज़डी दाती होके तूं ऐतनी गंभीर हैण कि) हाथी ने (तेरी)
चाल दी बरज़बरी कीह कर (सज़कंी) है।
(तेरे) हज़थ विच कवल है, सुंदरता दी तूं अवधी हैण (ऐतनी कि) रती दी सारी
प्रभुता (तूं) हर लैं वाली हैण।
हे शोभा वाली! (तेरे) अंग सुहल ते पतले हन, अज़ख हरनी वाणग (सुंदर) है, (ते,
तूं) सदा जुआन हैण, अर बुज़धी दा दाती हैण।
भाव: इस विच कवि जी ने सरसती दे सरीर दी सुंदरता ते मन दे गुणां, दोहां
शैआण दी सिफत कीती है:-
-१. मन या सुभाव दे शुभ गुण:-
-१. (अ) विघनां दे नाश करन वाली।
(अ) इज़ग़त दी रज़खक।
(ॲ) शरनागत दी प्रतिपालक।
२. बुज़धी दी दाती।
२. सरीर दी सुंदरता:-
(अ) हरनी वरगीआण अज़खां,
(अ) अंग सुहल ते सुबक,
(ॲ) सदा जुआन,
(स) रती नालोण सुंदर।
३. सांझे भाव:-
(अ) हाथी वरगी चाल
तोण सरीर दी चाल दी मसतानी ते लटकवीण सुंदरता मुराद है।
हाथी दी चाल तोणमुराद मन ते सुभाव दी गंभीरता दी है।
(अ) हज़थ विच कमल:-
स्रीरक शोभा ळ वधाअुणदा है।
हथ विच कमल-इस गज़ल दा चिंन्ह है कि जगत लई मेरे पास सुख
ते सुआद है। कावरसां दी सुंदरता अर विसमय भावाण दी दाती हां।