Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ११३
१४. ।कुहड़ाम दा भीखं शाह॥
१३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>१५
दोहरा: पुरि कुहड़ाम१ बिखै हुतो,
शाहु भीख जिस नाम।
निज मुरशिद के ढिग रहति,
ठसके२ ग्राम सु धाम ॥१॥
चौपई: जिस दिन श्री गुर जग बिदताए।
लोक म्रियाद हेतु प्रभु आए।
भई प्राति अुर महि लखि भीख।
-अवतरिओ नर बर दे सीख३ ॥२॥
तुरकनि कुमति करी है कूरे४।
क्रोधी कुतसत करमनि क्ररे५।
तिन को तेज नासिबेहेतु।
धरो देह गुरुता पद लेत६- ॥३॥
ब्रिंद मुरीद बीच तबि बैसा।
भयो संकलप रिदे तबि ऐसा।
ततछिन अुठो अपर सभि तागे।
पूरब दिशि मुख करि अनुरागे७ ॥४॥
मूंदि बिलोचन धरि अुर धाना।
सादर हाथ बंदि थित थाना।
मन महि कीनि बंदगी घनी।
परम प्रेम आतुरता सनी८ ॥५॥
नम्रि होइ धर९ सिर धरि दीना।
कुनसा कीनसि तीन१० प्रबीना।
१इह टिकाणा पटाला रिआसत विखे घुड़ाम नाम करके प्रसिज़ध है।
२इह ग्राम ग़िला करनाल दी थानेसर तहसील विच है।
३पुरशां ळ स्रेशट सिज़खिआ देण लई।
४कूड़े।
५क्रोधी निदित करम ते भानक करमां दे करने वाले हो गए हन।
६लैके।
७प्रेम करके।
८दीनता सहित।
९धरती ते।
१०सिजदा कीता तिंन वार।