Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ११७

गुरु चरिज़त्र कीनो, समझज़यै।
जोण जोण भए कहो सभि कथा।
गुरू प्रसंग सुनावहु जथा ॥४०॥
सुनी खालसे की इमि बानी।श्री गुरबखश सिंघ मन मानी१।
कथा सुनावनि लागो सोई।
नौ सतिगुर की जिमि जिमि होई ॥४१॥
दोहरा: सुनति भयो तबि खालसा, श्री गुरु जसु को श्रौन२।
पठहि सुनहि मन महिण गुनहि, पुरहि कामना तौन३ ॥४२॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे गुर परनाली प्रसंग
बरनन नाम अशटमो अंसू ॥८॥


१मंन लई।
२कंनीण।
३अुस दी।

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