Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) ११६

१५. ।जमतुज़ला भाअू बज़ध॥
१४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ४ अगला अंसू>>१६
दोहरा: भीमचंद सैलिद्र तबि, दूरि बचाइन जंग१।
खरो बिलोकति जंग को, बिचरे बीर निसंग२ ॥१॥
सैया: लोथ पै लोथ परी हय पोथत३
श्रोंत ते गन चालि पनारे४।
घाव भकाभक बोलति हैण
भट एक कराहति हाइ पुकारे।
घाइल घूमति झूमति हैण
बहु मार परी इक है मतवारे।
मारू जुझाअू को बाजति बाजन
एक लरे थिर सूर जुझारे ॥२॥
संग हंडूरीए भूप कटोच के
साथ कहै कहिलूर को राजा।
मार परी बिशुमार५, महां
घमसान परो, नहि खालसा भाजा।
भीर६ परी धरि धीर रहे
बहु जंग लरे न सरो कुछकाजा।
आपनी सैन बिलोकति कोण नहि
पीछे हटी तजि कै कुल लाजा ॥३॥
गूजर रंघर को सरदार
लखी बहु मार७ खरो टरि सोअू।
और दयो तन नांहि किसू
जिस ते नहि जीत भई अबि जोअू।
फैल के फौज मैण आप लरैण
न्रिप तौ सवधान बनै सभि कोअू।


१आपणे आप ळ जंग तोण बचा के ते दूर होके।
२खड़ा देख रिहा है कि (जंग विच) बीर निसंग होके विचर रहे हन।
३ढेर लगा।
४परन ले।
५बेशुमार, बहुती।
६भीड़।
७बहुत मार देखके।

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