Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ११७
१२. ।श्री चौल्हा साहिब दरशन॥
११ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>१३
दोहरा: इस प्रकार स्री सतिगुरू, केतिक दिवस बिताइ।
पावस मास सु भाद्रपद१, आवति भा सुखदाइ ॥१॥
चौपई: इक दिन बैठे क्रिपा निधाना।
ब्रिंद मसंदन संगि बखाना।
लिखो हुकम नामे सभि थान।
जहि सिख संगति अहै महान ॥२॥
तीरथ तरनतारन चलि आवैण।
दिवस दरश+ के२ दरशन पावै।
करहि शनान लहैण फल चार।
सुनो मसंदन, लिखे सुधारि ॥३॥
भाद्रोण वदि दसमी जबि आई।
श्री सतिगुरु तारी करिवाई।
सभि परिवार साथ भा तार।
तीरथ करनि शनान अुदार ॥४॥
चढि दमोदरी संदन मांही।
अपर नानकी चली म्रवाही।
सुनुखा खेम कुइर चढि डोरे।
संगतिसंग चली बहु औरे ॥५॥
गुरु तनुजा बीरो बडभागन।
माता संग चढी हरखति मन।
श्री सतिगुरु आए दरबार।
करी प्रदछना बंदन धारि ॥६॥
सगरे संग वहिर तबि आइ।
चढि खासे३ पर गुरू सुहाइ।
अंीराइ सूरजमल संग।
तेग बहादर चढे तुरंग ॥७॥
संदन पर गुरदास चढाए।
१भादोण दा महीना।
+पा:-पूरब।
२अमावस दे दिन।
३पालकी।