Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ११८
१५. ।गुरू जी गोणदवाल ते खडूर आए॥
१४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>१६
दोहरा: श्री सतिगुर हरिराइ जी,
कीरतिपुरि को छोरि।
निज बडिअनि गुर थान को१,
देखनि माझे ओर ॥१॥
चौपई: पतिशाहित मैण रौरा परे।
शाहिजहां के सुत जबि लरे।
श्री सतिगुर सतुज़द्रव को तरि कै।
सैना संग सकेलनि करि कै ॥२॥
देशदुआबा अुलघे सारे।
बाजति दुंदभि जाति अगारे।
ग़री बादले चारु निशान।
फहिरति आगे, चलहि किकान ॥३॥
कबि सतिगुर सिवका चढि चालैण।
कबहु तुरंग अरूढि बिसालैण।
कबि मतंग पर हुइ असवार।
संग वाहिनी कितिक हग़ार ॥४॥
सुभट कुदावति चलहि तुरंग।
गुरू दिखावहि मनहु कुरंग।
इम गमनति गे पास बिपासा।
सिंधु गामनी सुजल बिलासा२ ॥५॥
नौका करी सकेलनि सारी।
चढि सैना गन अुतरी पारी।
अहै तीर पर गोइंदवाल।
जाइ पहूंचे गुरू क्रिपाल ॥६॥
नमो करी दूरहि ते हेरि।
गए बापका पर गुर फेर।
करि पूजा को नीर शनाने।
अंम्रित जल पुन कीनसि पाने ॥७॥
१आपणे वडे सतिगुराण जी दे थां।
२समुंदर विच जाण वाली अनददाइक स्रेशट जल वाली।