Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ११९

१४. ।अरदासां॥१३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>१५
दोहरा: सतिगुर आए सभा महि, सिज़खनि श्रेय करंति।
सिज़ख बणीआण तबि नमो करि, थिरो निकट भगवंत ॥१॥
चौपई: श्री मुख ते गुर म्रिदुल बखाने।
कहु सिज़खा इज़छा का ठाने?
हम पग को निरमिल१ सिख अहैण।
दिश दज़खन महि इक तूं रहैण ॥२॥
दज़खं बिखै सिज़ख हहि थोरे।
तुम समसर तहि कोइ न औरे।
तबि कर जोरि बिशंभर दास।
गुरू पास इम करो प्रकाश ॥३॥
प्रभु जी! दारिद भा घर मोरे।
सकल पदारथ हति भए थोरे२।
पूरब करहु संपदा भारी३।
पीछे पूछौण ममता टारी४ ॥४॥
सुनि करि श्री सतिगुर मुसकाए।
वधहि संपदा तथा बताए।
दरशन करि घर जैहो जबिहूं।
करहु कराहु प्रशाद सु तबिहूं ॥५॥
अूपर छाद बसत्र को दीजै।
पाठ अनद तीन करि लीजै।
प्रथम पढहु जप बैठहु पास।
सतिगुर हित दिहु पंच गिरास५ ॥६॥
पंच सिज़ख को करहु अचावन६।
तन मन ते है कै थित पावन।
रहति अरदास भेव जो जानै।१भाव शुज़ध रिदे वाला।
२नाश होके थोड़े हो गए।
३पहिले (मेरी) दौलत भारी करो।
४फिर पिछोण ममता दूर करन दी गज़ल पुज़छांगा।
५भाव भोग लाअुण वाले कौल विच पंज छांदे पाओ।
६पंजाण सिज़खां ळ खुलाओ मुराद पंजाण पिआरिआण तोण जापदी है।

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