Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) १२०
१६. ।अनते दा स्राप बिधी चंद ने बखशवाइआ। तसवीर चिज़त्री। खोजा
अनवर॥
१५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८अगला अंसू>>१७
दोहरा: शाहु सहित इम पैणद को, भाखो सकल प्रसंग।
श्री हरि गोविंद चंद को, सुनहु प्रेम के संग ॥१॥
सैया छंद: लाइ बिसाल सुधरमा१ के सम
दिपति सभा गुर इंद्र मनिद।
चहुंदिशि ते संगति नित आवहि
दरसहि पूजहि पद अरबिंद।
सुर सम सिख की भीर निकटि बहु
अरप अनेक अकोरनि ब्रिंद।
मनो कामना प्रापति है कै
जसु अुचरहि श्री हरिगोविंद ॥२॥
शुभति सिंघासन मनहु बिशन प्रभु
चहैण सु करैण बिलब न कोइ।
तअू मानवी लील्हा धारैण
रामचंद के समसर सोइ*।
बार बार प्रिय रण को ठानहि
क्रिशन चंद अुपमा तबि होइ*।
करहि भोग२ महि जोग अनदति रोग
सोग सिज़खन के खोइ ॥३॥
जिस पर करहि क्रिपा प्रभु अपनी
देण सिमरन सतिनाम कि गान।
ठांढी रहैण अठारहि सिज़धांआइसु मानहि जोरति पान।
शकति बिसाल पाइ सभि बिधि की
नहिन जनावहि, अपर समान।
ऐसे सिज़ख हग़ारहु गुर के
१देव सभा।
*भाई नद लाल जी ने छोवेण गुराण ळ राम क्रिशन अवताराण तोण वज़डा दज़सिआ है, कवी जी ने आप बी
सतिगुराण ळ पुरशोतमां तोण वडे ते परावराण दे नाथ किहा है। देखो ना: प्रा: पू: अधाय १ अंक ४।
इथे केवल लीला मात्र दा द्रिशटांत दिज़ता है।
२ग्रिहसथ।