Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) १२३
१३. ।चोल्हा (भैंी) ग्राम दी कथा॥
१२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>१४
दोहरा: १इस थल को आइ गुरु,
अुतरे जबि ही थान।
पैणच हुतो गुर सिज़ख सो,
सुनि आयो सुख मानि ॥१॥
चौपई: धरो प्रशादि अुपाइन आगे।
श्री अरजन की चरनीण लागे।
-जानहु दास निवास करीजै।
होहि क्रितारथ, दरशन दीजै- ॥२॥
इम कहि गुर इस थान टिकाए।
सरब सेव कीनी मन लाए।
श्री गंगा निज सदन मझार।
हित बसिबे ले गयो बिचारि ॥३॥
पंच त्रिया ने२ बहु सनमानी।
मात समानजानि हित ठानी।
सुंदर पलघ डसावन करे।
त्रिय जानो- दिन बड अबि चरे३ ॥४॥
पहति करति को४ लागै देरी।
गुर के हुइ है छुधा घनेरी-।
सिता, घ्रिज़त को बहुत मिलाइ।
कछु चूरी ततकाल बनाइ ॥५॥
बडे भाव सोण पूरि कटोरा।
आई तुरत गुरू जित ओरा।
करि बंदन बैठी बडभागन।
गुरु बूझी लखि करि अनुरागन ॥६॥
-कर महि, कहो कहां ले आई?
कहां कामना रिदे अुठाई? -।
-श्री गुरु तुमरी छुधा बिचारी।
१भाई गुरदास जी ही कथा कहि रहे हन।
२पैणच दी इसत्री ने।
३हुण दिन बहुत चड़्हिआ है।
४दाल रिंन्हदिआण ळ।