Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) १२३

१६. ।जमतुज़ले मारन पिछोण जंग। रात ळ आराम॥
१५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ४ अगला अंसू>>१७
दोहरा: मान सिंघ के पान महि, हुतो निशान महांन।
वधो अज़ग्र तिह लोथ ढिग, परन लगो घमसान ॥१॥
चौपई: सिंघ बहादर फांधति आए।
कराचोल कर धरि चमकाए।
तोमर तीरनि तुरत प्रहारे।
भाअू सिंघ तहां बहु मारे१ ॥२॥
सिंघनि अनी घनी तहि घावति२।
तुपक तमांचे तकि तकि लावति।
पिखि घमंड चंद आइ कटोचि।
ऐणचि ऐणचि धनु बाननि मोचि ॥३॥
प्रेरे बहु जोधा तिस थान।
कहो करहु बल, लेहु निशान३।
सहित लोथ ते तुरत अुठावहु।
आवहि वधे मारि अुथलावहु ॥४॥
मान सिंघ जोधा धरि धीर।गाडो तहां निशान अभीर४।
रहित कहित के सहित महित है५।
सर मारहि जिह निकट लहति है ॥५॥
छेर हग़ारहु ओरड़ परी।
हाइ हाइ कहि मारति मरी६।
घने ढोल ग्रामनि के साथ।
सेले सिपर शकति७ असि हाथ ॥६॥
बजे ग़ोर ते बहुत जुझाअू।
सुनि सुनि फांदति आइ अगाअू।


१सिंघां ने ओथे भाअु (= जमतुज़ला भाअू दे साथी) बड़े मारे।
२सिंघां दी बहुती फौज अुथे मार रही सी (वैरी ळ)।
३झंडा खोह लओ।
४भाव बहादरी नाल।
५भाव रहिंी कहिंी दा वज़डा (सूरमा) है।
६मरदे मारदे हन।
७बरछीआण।

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