Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १२७

रहो संगि सतिगुर के सदा।
सो तुम दरस आइ है जदा।
तिसि ते सुनहु सकल बिरतंता।
जथा चरिज़त्र कीन भगवंता१ ॥३०॥
एव बिचारति बाला आयो।
गुर प्रसंग तिन सकल सुनायो।
सो हम पूरबि२ ही कहि आए।
छंद चौपई बंद बनाए ॥३१॥
श्री बाबा नानक जी जैसे।
करे प्रसंग सुने सभि तैसे।
निस दिन प्रेम लगो तिन केरा।
सिमरहिण सतिगुर संझ सवेरा ॥३२॥
सुनी जनम साखी गुर सारी।
कुछ बिराग ते धीरज धारी।जिन सिज़खन के भाग बिसाला।
सेवहिण, बानी सुनहिण रसाला ॥३३॥
तअू गुरू अंगद इस रीता।
बोलहिण अलप, न ठानहिण प्रीता।
बालिक दशा बिखै निति रहैण।
हरख शोक जिन लेश न अहै ॥३४॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे श्री अंगद प्रगट होण
प्रसंग बरनन नाम नवमोण अंसू ॥९॥


१भाव गुर नानक देव जी ने।
२पहिले (श्री गुर नानक प्रकाश विच)।

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