Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) १२५
१३. ।प्रिथीए दी झूठी गोणद। सतिगुराण ते भरोसा रज़खं ते सीतला मुड़ी॥
१२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>१४
दोहरा: इत कुटंब सभि चिंत जुत, महांदेव ते आदि।
चित चाहति हुइ कुशल तन, पुनहि पिखैण अहिलाद ॥१॥
पाधड़ी छंद: अुत प्रिथीआ रिदै अनद धारि।
करमो समीप बाकनि अुचारि।अबि हेरि भयो जिम तिनहु नद।
नहि जियन आस, शोकति बिलद१ ॥२॥
सति बाक मोर अजहूं न जानि२।
जिम कहो प्रथम मैण कोप ठानि।
तिम भई सीतला निकसि भूर।
अबि होइ म्रितू तिस की ग़रूर ॥३॥
मैण कई बार लीनो पताइ।
मुख कहौण बाक नहि निफल जाइ।
बल करामात को मोहि मांहि।
अरजन लखै इक, और नांहि३ ॥४॥
सो डरति रहति मो ते बिसाल।
पद करहि बंदना मिलिनि काल।
नहि महांदेव ते भै करंति।
भोरा४ सुभाअु नहि कुछ बुलति ॥५॥
सुत मरे पिछारी बनहि दीन।
पुन नहीण निपजि है आस हीन।
सुनि कंत बैन करमो सु चैन।
अुर हरख धारि परफुज़ल नैन ॥६॥
इम बचन साच तुमरौ जि होइ।
इस सम अुछाह नहि अपर कोइ।
जिस निकटि बीस दस ग्राम राज।बड होइ खरच तूटो समाज ॥७॥
तिस ढिग अचानकै बनि सु जाइ।
१शोक करदे हन बहुता।
२अजे बी नहीण जाणदी?
३होर कोई नहीण जाणदा।
४भोला।