Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) १२६
१४. ।दूत आवन॥
१३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>१५
दोहरा: मुल पठान महान दल, कतल भयो जबि एव।
सुभट सभारे आपने, सगरे श्री गुर देव ॥१॥
चौपई: मुलसखान थिरो इक थान।
जिस कै चिंता शोक महान।
जितिक सहंस्र बचे भट हारे।सभि दिशि ते तिस पासि पधारे ॥२॥
तबहि दूत इक निकटि बुलायो।
कहि बहु बिधि गुरु निकट पठायो।
शसत्र हीन हुइ गयो अगारी।
हाथ जोरि करि बंदन धारी१ ॥३॥
गुरु साहिब! सुनीयहि दे कान।
मोहि पठायो मुगलसखान।
कही आपि को बात भलेरी।
-तजहु लराई भई घनेरी ॥४४॥
हग़रत को अबि दीजहि बाज।
नहि थल अस जहि बसि हो भाज।
नाहक प्रान देति कोण लरि कै।
का सुधरहि जबि मरि हो अरि कै ॥५॥
कई लाख सैना पतिशाही।
किमि समता चाहहु चित मांही।
अलप बाग़ की बात पछानो।
इतो बिगार अपनि कोण ठानो ॥६॥
करी भूलि करि समझहु अबै।
मो मंग मिलहु सुधारहु सबै।
शाहु समीप आप ले चलौण।
तुमहि मिलाइ भले करि मिलौण ॥७॥
जो कीनिसि अपराध बिसाला।
छिमा करावौण मैण ततकाला।
निज पुरि आदि ग्राम जे सारे।
१(अुस दूत ने)नमसकार कीती।