Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) १२७
१६. ।भीखं शाह दी बंदगी॥
१५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>१७
दोहरा: फरश गलीचे गिलम को, रचो रुचिर इक सार।
कंचन खचित१ प्रयंक के, आसतरन२ जिस चारु ॥१॥
चौपई: म्रिदुल मनोग धरे अुपधानु३।
सेजबंद सुठ ग़री महान।
श्री गुजरी ढिग होइ क्रिपाल।
दुहि हाथनि पर ले बर बाल ॥२॥
मंद मंद४ करि अदब घनेरा।
श्री गुर को लाइव तिस बेरा।
सूरज मुखी५ हाथ गहि आगे।
किय सूरज दिशि धूप न लागे ॥३॥चारु चमर ले करि भा पाछे६।
करति ढुरावनि इत अुत आछे।
गावनि लगे शबद सुखकारी।
राग रागनी रुचिर मझारी ॥४॥
बजहि रबाब म्रिदंग अुदारा।
जिन को श्रवं देति सुख भारा।
पुरि पटंे की संगति आई।
अनिक प्रकार अुपाइन लाई ॥५॥
करि करि रिदै कामना आए।
दरशन करति पाइ मन भाए७।
होनि लगी अरदास अगारी।
बसत्र बिभूखन अरपति भारी ॥६॥
बहुरो शाहि भीख बुलवाइव।
मन बाणछति दरसहु सुखदाइव।
१जड़े होए।
२विछावंे।
३सिरहांे।
४हौली हौली।
५भाव गोल पज़खा।
६पिज़छे होइआ।
७मन वाणछत।