Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) १३०

१६. ।बीमार घोड़ा काग़ी तोण लिआ॥
१५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>१७
दोहरा: रिदे बिचारो सतिगुरू, -शाहजहां मति मंद।
करी अवज़गा अदब बिन, लीनि तुरंग बिलद ॥१॥
चौपई: आज लीनि असु कीनि कुचाली।
अपर वसतु छीनहि पिखि काली।
सिज़खनि अुर शरधा मिटि जावै।
वसतु अमोलक बहुर न लावैण ॥२॥
जानैण बली तुरक ले छीनि१।
धरहि त्रास बिनु आस प्रबीनि।
हम सिज़खी को करहि बिथारनि।
मिटहि२, जबहि पिखि लैण अस कारनि ॥३॥
इस३ को संग न बनहि हमारी।
बिगर परहि औचक किस बारी।
अपनो घोरा लै हैण जबै।
इस को संग ताग देण तबै- ॥४॥
इम सतिगुरु अुर महि ठहिराई।
शाहजहां अस लियो मंगाई।
हेरनि हेत प्रतीखति रहो।
आयहुनिकट हरख बहु लहो ॥५॥
बसत्र अुतारि आप कर फेरा।
सकल बनाअु शुभति अति हेरा।
चढनि हेतु जबि अुज़दम करो।
गुर फेरो मन, ततछिनि मुरो४ ॥६॥
कहो थकति हय आयहु दूरि।
दिहु बिसराम ग़ीन बनि रूर५।
दो इक तीन दिवस मुह चरैण।
तावति श्रम सगरो परहरै ॥७॥


१जानंगे कि बली तुरक खोह लैंगे।
२मिट जाएगी (सिज़खी)।
३शाह जहान।
४(शाह दा मन) फिर गिआ।
५सुहणी काठी बणे।

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