Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) १३०
१४. ।भाई हेमा, भाई गुरदास प्रलोक गमन॥
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दोहरा: तिस थल जबि बैठे गुरू, सभि अुर संसै ठानि।
कर जोरे बूझति भए, किह सथान इहु आनि१? ॥१॥
चौपई: करि बंदन को रावर बैसे।
किस को थल,होयो इह कैसे?
दया सिंधु सुनि बाक बखाने।
इहु श्री नानक को इसथाने ॥२॥
पठेविंड पुरि नाम कहंते।
खज़त्री बेदी ब्रिंद बसंते।
संग हुते बाला मरदाना।
श्री नानक आए इस थाना ॥३॥
आनि बेदीयन जबहि निहारे।
करति कुतरकन बाक अुचारे।
-कहां बेदीयनि बंसु लजावा?
बेख फकीर कुराहु चलावा ॥४॥
इस पुरि भ्रातन महि चहि२ थान।
करहि पसारनि दंभ महान।
हम शरीक तुव बसन न दैहैण।
जाहु अबहि नहि पकड़ अुठै हैण- ॥५॥
कहो गुरू -हम बास न करैण।
को दिन बसहि, आन थल फिरैण।
नहीण शरीकनि संग शरीकी।
तजी लालसा, नांहिन नीकी- ॥६॥
सुनि बेदीनि कोप करि कहो।
-इहु तुव दाव सभिनि हम लहो।
मिलि अपनाइ लेहिगे केई३।
बनहि सहाइक तुव तबि तेई४ ॥७॥
यां ते अबहि अुठावनि करैण।
१किहड़ा ठिकाणा इहजाणिआ है?
२भाव इस पिंड जात भ्रावाण विच थां लोड़दे हो।
३मिलके कईआण ळ आपणा कर लओगे।
४ओह।