Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) १३१
१८. ।शकर गंग लगण दी कथा॥
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दोहरा: धंन गुरू पूरन प्रभू, नर कहि आपस मांहि।
रामचंद के पौर जिम, म्रितक बिज़प्र सुत जाहि१* ॥१॥
चौपई: सुनी कथा महि२ दिज ले गयो।
अधिकब्रिलाप राम दर कियो।
तबि रघुबर बहु करे अुपाइ।
जिम नारद मुनि दिये बताइ ॥२॥
जोण कोण करि दिज पुज़त्र जिवायो*।
राम चंद निज नेम निबाहो।
सो गति भई गुरू दरबार।
दिज संकट ते लीनि अुबारि ॥३॥
इम संबाद करैण नर नारी।
गुर कीरति को करैण अुचारी।
सभा बिखै जबि सुध चलि गई।
बिज़प्र पुज़त्र जीवो सुध भई ॥४॥
सुनो अचानक श्री हरिराइ।
बुझो शीघ्र कहो जबि आइ।
किह सिख अपनि आरबल दीनि?
परअुपकार किनहु अस कीनि? ॥५॥
सुनति सभासद बिसमै भए।
चपल बिलोचन इत अुत किए।
निज निज निकटि पिखहि सभि बैसे।
१जीविआ सी।
*पा:-जाहि = गिआ सी।
२कथा विच असां सुणिआण सी कि.......।
*वालमीकी रामाइं विच लिखिआ है कि जद श्री राम चंद्र जी बनबास कज़ट वापस आ तखत ते
बैठे तां इक दिन इक ब्राहमण ने आपणे मुरदा पुज़त्र ळ अुठा के इन्हां अज़गे लिआ रखिआ ते
किहा कि इह लड़का साडे वेखदे नहीण मरना चाहीदा सी, किअुणकि मैण ते मेरी इसत्री ने कोई
अजिहापाप नहीण कीता जिस तोण पुज़त्र दे मरन दा सज़ल वेखदे। श्री रामचंद्र जी लड़के दी मौत दा
कारन लभदे इक जंगल विच गए अुथे शंबूक नाम दा इक मनुख पुज़ठा लटक तप कर रिहा सी।
राम चंदर जी ने इह मालूम करके कि इह शूदर होके तप कर रिहा है, जिस दा कि इस ळ
वेद ने अधिकार नहीण दिज़ता, अुस दा सिर तलवार नाल कज़ट दिज़ता। जिस तोण ब्रहमण दा लड़का
जीअु पिआ। चेते रहे इस रामाइं दी कथा दे लेखक आपणे लिखे दे आप ग़िंमेवार हैन,
गुरमत विच हरि अूच नीच ळ भजन बंदगी दा सम अधिकार है।