Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) १३०
१७. ।पहाड़ीआण दीआण रातीण सलाहां॥
१६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ४ अगला अंसू>>१८
दोहरा: भीमचंद बिन अनद के, देखि रहो बिसमाइ।
-बीर हग़ारहु पच रहे, लोथ नहीण किम लाइ ॥१॥
चौपई: अलप खालसा अरो लहो है१।
बहुत हमारी दिशा रहो है२।
पचि पचि रहे हेल को डालति।
अनिक प्रकारन के बल घालति ॥२॥
नहीण किसहु ने सिंघ हलाए।
गाड निशान थिरे जिस थाएण।
किम इह३ लरते तहां नरन मै४-।
इम सोचति गिरपति बहु मन मैण ॥३॥
हटी चमूं लरिबे पिछवाई।
आइ सिवर घालो५ गिरराई।
मरे परे सो खेत रहे हैण।
जो घाइल संभाल लए हैण ॥४॥
थकति सूरमे सकल तुरंगनि।मुरझाने मुख सिथले अंगनि।
बिन अुतसाह शोक मैण केते।
सनबंधी हति घालो जेते६ ॥५॥
मंत्री अपर जितिक थे साने।
होति समीप सकल सनमाने।
निज वग़ीर को निकट बिठारा।
जलति मसाल खरे गन झारा७ ॥६॥
आइ केसरीचंद हंडूरी।
भूप कटोच आदि बिधि रूरी।
१अड़िआ वेखिआ है।
२साडे वल बहुता (दल) हैगा सी।
३भाव पहाड़ी।
४भाव सिंघां विच।
५पिछे आ के डेरा पाइआ।
६जिन्हां दे सनबंधी मारे गए सन।
७झार मताबी।