Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १३५

-अुचित लखे, निज थल थिति किए-।
इमि श्री अंगद अुज़तर दीने।
सिख चहुण दिश, बिच आप असीने ॥३८॥
इस प्रकाश कुछ दिवस बिताए।
दिन प्रति बिदतहिण जग अधिकाए।
दिज़ली का हुमाअु* भा शाहू।
भयो राज बड सभि जग मांहू ॥३९॥
दै भ्राता पठान बड सूरे।
बड अुमराव सु कीन हदूरे।
बिगर परे दिज़ली पति संग१।
गरब ठानि चाहति भे जंग ॥४०॥
एक सलेम शाहि तिस नाम+।
शेर शाह दूसर बलधाम२।
आकी दुरग प्राग३ करि लीना।
सकल समाज जुज़ध को कीना ॥४१॥
सुनि हुमाअु ने कीनि चढाई।
-मो पै सैना बहु समुदाई।
तिन के निकटि अलप ही अहे।
हतोण कि बाणधोण चढि- इमि चहे ॥४२॥
पहुणचि प्रयाग जंग को ठाना।
दुहिदिशि बाजे बजे महांना।
निकसे तबि पठान दै भाई।
लशकर४ मिलते मची लराई ॥४३॥
तबहिपठानि गही किरपानैण।
भए समुख गन सुभटनि हानै५।

*हुमायूं-पातशाह। इह बाबर दा पुज़त्र ते अकबर दा पिता सी।
१भाव हुमायूं नाल।
+शेर शाह दे दो भरा सन, इक दा नाम निग़ाम सी ते दूसरे दा सुलेमान। इस सलेम तोण मुराद
सुलेमान दी जापदी है। शेरशाह दे मरन पिछोण अुस दा दूसरा पुज़तर जलाल नामे गज़दी ते बैठा सी,
एस ने आपणा खिताब सलेम रखिआ सी।
२सूरमा।
३अलाहाबाद।
४फौज।
५सनमुख समूह सूरमिआण ळ मारन लई।

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