Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) १३५
१७. ।बाल कअुतक॥
१६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>१८
दोहरा: इस प्रकार करि दरस को,
सैद भीख सुख पाइ।
देश आपने को हटो,
सतिगुर चरन मनाइ ॥१॥
सैया: श्री गुर सुंदर सूरत सोहति,
मूरति माधुरी पूरति सारी१।
रेशम डोर बधी पलना२ संग
दास झुलावति ऐणचि अगारी।
मंदहिमंद३ अनद अुमंगति
अंग अुतंग करैण४ दुति भारी।
मानहु संघर के करिबे हित
सूचत हैण अुतसाहु बिथारी५ ॥२॥
दै पद सुंदर जोण अरबिंद सु
दासनि ब्रिंद को आनद दानी।
कोमल लाल अकार लघू
अंगुरी इकसार सुभैण दुति सानी६।
चिकवन चारु सु रंगि सु गोल
दिपैण नख७, जान कही कवि बानी८।
फूल बधूप कि* अूपर९ जोण
अति अुज़जल हीरनि पंगति ठानी१० ॥३॥
कूरम११ पीठ मनिद दुअू
१मिठास नाल पूरत है सारी।
२पंघूड़े।
३हौली हौली।
४अंग अुज़चे करदे हन।
५जुज़ध करन लई विसतार सहत अुतसाह जंांवदे हन।
६शोभा सहित।
७चीकंे सुहणे स्रेशट रंग वाले ते गोल चमक रहे हन नहु।
८जाणके कवी ने बाणी कही है भाव कवी ने अगली सतर विच इन्हां दी अुपमा दज़संी है।
*पाठ बंधूक कि होवे तां असचरज नहीण।
९गुल दुपहिरी दे फुज़ल अुज़ते ।संस: बंधुक॥
१०अुजल हीरिआण दी पंगती लाई है।
११कज़छूकुंमे दी।